Book Title: Murti Mandan Prakash
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 31
________________ ( २९ ) C अग्नि शीतल नीर बनाया-सिया को आन उभारा ||तेरा०||१|| शूली टूट भया सिंघासन गए मुकत श्रीसेठ सुदर्शन ॥ ली मारीच जो सम्यकदर्शन- तिर्थंकर पद धारा । तेरा ॥२॥ धर्म सदा जगमें सुखकारी - दुखहारी कलमल परहारी || न्यामत धर्म जगत हितकारी- पाप बिमोचन हारी || तेरा ० ||३|| २५ चाल -- ( राग आसावरी ) काहे मिचावे शोर पपैय्या ॥ काहे रहो शुध भूल चेतन || काहे रहो शुध भूल || टेक ॥ आंव हेत तैं बाग़ लगायो फल चाखनको जी ललचायो ॥ वो दिये पेड़ बंबूल | चेतन० ॥ १ ॥ झूटे देव गुरू नित माने पर परणति निज परणति जाने ॥ समकित से प्रतिकूल | चेतन० ॥ २ ॥ निशदिन भोग बिषयमें राचा काम क्रोध माया मध माचा || बोवत कांटे शूल | चेतन० ॥ ३ ॥ चेतनको तैं जड़वत जाना और जड़को चेतन कर माना ॥ ऐसी समझ सर धूल | चेतन० ॥ ४ ॥ शुभको त्याग अशुभ चित दीना - न्यामत सौदा ऐसा कौना || व्याज रहा ना मूल ॥ चेतन० ॥ ५ ॥

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