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चौधरी और पंचों की पर्वा न कर ॥ यह गरीबों पे हरगिज़ न करते नज़रइनके दिल में दया का असर ही नहीं ॥ २ ॥ व्यर्थ व्यय इस जमाने में अच्छा नहींप्यारे धन का लुटाना भी अच्छा नहीं || बनके कंगाल रहना भी अच्छा नहींऐसी बातों का अच्छा समर ही नहीं ॥ ३ ॥ ताश चौसर मिचाना भी अच्छा नहींखेल में दिन गुमाना भी अच्छा नहींखाली बैठके खाना भी अच्छा नहीं-
बिना उद्यमके होगा गुज़रही नहीं ॥ ४ ॥ धर्म रीति से कुछ धन कमाया करो - ध्यान विद्या में भी कुछ लगाया करो || दर्द दुखियोंका कुछतो वटाया करो -
न्यायमत क्या किसीका फिकरही नहीं ॥ ५ ॥
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चाल - कहां लेजाऊं दिल दोनो जहां में इसकी मुशकिल है ॥ जैनमत होगया मुर्दा कोई अकसीर पैदाकरं ।। . उमास्वामी से और अकलंकसे तू बीर पैदाकर ॥ १ ॥ न्यायके फिल्सफा के शास्तर दुनियाको दिखलाकर ॥ जैनमतकी सदाक़त की ज़रा तासीर पैदाकर ॥२॥