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(१७) निराकार और सरख ब्यापी जो ईश्वरको बताते हैं। उन्हींसे पूछिये कैसे उन्हें चंदन चढ़ाते हैं ॥ ५॥ दिखा हाउका डर न्यामत वह लोगोंको डराते हैं । चिदानन्द रूप ईश्वरको जो जग करता बताते हैं ॥ ६॥
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ईश्वरका शुद्ध लक्षण।
चाल-कहां लेजाऊ दिल दोनो जहां में इसकी मुशकिल है । जैनमत ऐसा ईश्वरका नहीं लक्षण जिताता है ।। | ठीक जो उसका लक्षण है सुनो आगे बताता है ॥१॥ न वह घट घटमें जाता है मगर घट घटका ज्ञाता है । न करता है न हरता आप आपेमें समाता है ॥२॥ निरंजन निर्विकारी है निजानंद रस विहारी है ।। वह जीवन मुक्त है और सबका हित उपदेश दाता है ॥३॥ मारता है न मरता है न फिर अवतार धरता है। न्यायमत सारे झगड़ोंसे सरासर छूट जाता है ॥ ४॥
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जैनमतके अनुसार पूजा करनेका माशय और उसका भाव और विधि पूजा का प्राशय यही है कि भगवत के गुणों में राग और संसारी पदार्थों में घेराग भाव पैदा हो।
(सम्पूर्ण पूजा जयमाल मादि सहित अलग छपी है देखो पुस्तक अंक ४जिनेन्द्र पूजा मूल्य)
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