Book Title: Murti Mandan Prakash
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 16
________________ - - (१४) पशु पक्षी चराचर सबको फंदेमें फंसाया है । निराला ढंग कर्मों का अजबनकशा दिखाया है ॥९॥ सदा स्वर्गों में भी हरगिज नहीं इस जीवको कल है ।। नरकमें हर तरफ हरदम मची दिनरात कलकल है ॥ १० ॥ मनुष गति में भी देखो जीवको नहीं चैन इकपल है । मौतका बज रहा डंका दमादम और चल चल है ॥ ११ ॥ कहां जाएं कहो न्यामत बड़ी दुनियामें. मुशकिल है।। सभी संसार ब्याकुल है न यहां कलहै न वहां कलहै ॥ १२ ॥ - - - ईश्वर का स्वरूप ॥ ___ चाल-कहां लेजाऊ दिल दोनों जहां में इसकी मुशकिल है ॥ सुखी वह हैं जिन्होंने इस करम के जाल को तोड़ा। जगत जंजालको छोड़ा सकल दुनिया से मुंह मोड़ा ॥ १॥ बने आतमसे परमातम शिवासुन्दर से नेह जोड़ा॥ बताया मोक्षका मारग कुमारगका भरम तोड़ा ॥ २ ॥ वही ईश्वर वही परमातमा हक्क गोड कुछ कहलो॥ हजारों नाम हैं उसके जो कुछ कहिये सो है थोड़ा.॥३॥ वह जीवन मुक्तहै सर्वज्ञ है और बीतरागी है । हितोपदेशी परोपकारी है सब बिषयोंका त्यागी है।॥ ४ ॥ न कपटी है न मानी है न क्रोधी है न लोभी है। न दुशमन है न हामी है न देषी है न रागी है॥५॥ - -

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