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(११) सरब जग जीव हितकारी छबी बैराग सुखकारी ।। न्यायमत जाए बलिहारी जो सूरत हो तो ऐसी हो ॥ ६ ॥
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(दोहा) पर्म हितेपी जगतके बीत राग भगवान ॥ सत वक्ता सर्वज्ञ नित नमत होत कल्याण ॥ १ ॥ कारज कोई जगतमें बिनं मूरत नहीं होय ॥ लघु दीरघ अच्छा बुरा इस बिन बने न कोय ॥२॥ जल वायू मिट्टी अगन तारे चन्द अरु भान ॥ पांचों इन्द्री और मन है सब मूरतिवान.॥ ३ ॥ परिणामों के बदलमें प्रतिमा कारण जान ॥ मूरति मंडनके विषे हैं लाखों पर्माण ॥ ४ ॥ जो नर हैं अज्ञान बश प्रतिमासे प्रतिकूल ।। पक्ष छोड़कर देखलें है यह उनकी भूल ॥ ५॥ स्यादवाद निक्षेप अरु नय प्रमाण दीय ॥ सतासतय निर्णय करो जो भ्रम तिमर नसाय ॥ ६ ॥ न्यामत सत्य विचार कर जग जीवन हित काज ।। लिख युक्ती दृष्टान्तदे मूरति मंडन आज ॥७॥
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(द्वितीय भाग-मूर्ति मंडन पत्र)
(नोट ) अप्रिल सन् १९२० ( वैसाख सम्बत् १९७७ ) में लाला पन्नालाल
वोहरा बजरंगगढ निवामी (रियासत गवालियर ) का एक पत्र
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