Book Title: Murti Mandan Prakash
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 12
________________ - - (१०) - - - - चाल-कहां लेजाऊ दिल दोनो जहां में इसकी मुशकिल है। दरश जिनराजकी मूरतका पाए जिसका जी चाहे ॥ भाव बैरागका दिलमें जमाए जिसका जी चाहे ॥ १॥ विषयका रागका देखो नहीं कोई निशां इसमें । शुवा जो दिलमें हो आकर मिटाए जिसका जी चाहे ॥२॥ ज़रा दर्शनसे हो बैरागता पैदा तेरे दिलमें ।। अगर निश्चय नहीं हो आज़माए जिसका जी चाहे ॥३॥ किसीके कहने सुन्नेकी नहीं परवाः हमें न्यामत || कोई सौ बात गर झूटी बनाए जिसका जी चाहे ॥ ४ ॥ A - - चाल-कहां लेजाऊ दिल दोनो जहां में इसको मुशकिल है ॥ भाव बैराग दीवे जो मूरत हो तो ऐसी हो॥ न रागी हो न देषी हो जो सूरत हो तो ऐसी हो ॥१॥ जिसे देखेसे पैदा दिलमें हो अनुभव निजातमका ॥ ख परका भेद पर्काशे जो मूरत हो तो ऐसी हो ॥ २॥ - न बस्तर हो न शस्तर हो नहीं हो संगमें नारी ॥ न प्रिग्रह हो न बाहन हो जो मूरत हो तो ऐसी हो ॥३॥ दिगम्बर रूप पद्मासन बिगत दूषन निराभूषन ॥ यही अरिहंतकी मूरत जो मूरत हो तो ऐसी हो ॥ ४॥ नज़र आखोंकी नाशाकी अनी परसे गुज़रती हो । | सरासर शान्त सूरत हो जो मूरत हो तो ऐसी हो ॥.५ ॥ - - - - -

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