Book Title: Murti Mandan Prakash
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ - हार गल डाला जहां चौहानकी तसवीर है ॥ ५ ॥ खिंच गई तलवार बस जयचन्द पि राज में ॥ खेत लाखोंका पड़ा बाइस यही तसवीर है ॥ ६ ॥ न्यायमत अच्छी बुरी तसवीर में तासीर है ॥ जो असर करती नहीं वह कौनसी तसवीर है ॥ ७ ॥ - - - - - चाल-कौन कहता है कि मैं तेरे सरीदारों में हू ।। सार दुनियामें अगर कुछ है तो है बैरागता॥ तेरी मूरतसे प्रभू होती अयां बैरागता ॥१॥ हमने देखी हैं हजारों मूरतें संसारमें ॥ पर तुम्हारी सी कहीं पाई नहीं बैरागता ॥२॥ नाकपर आकरके ठैरी है जो आखाँकी निगाह । साफ यह दर्शा रही है आपकी बैरागता ॥ ३ ॥ आतम अनुभव और निजानन्द रसं हो पट देखकर ॥ आप परका भेद दिखलाती तेरी बैरागता ॥ ४ ॥ मोक्षका मारग बताती बीतरागी भावसे ॥ ध्यानका नक्शा जमाती है तेरी बैरागता ॥ ५॥ शील संजम दान तप विज्ञान सब कुछ है यही ।। बस निजात होनेका ज़रिया है यही बैरागता ॥ ६ ॥ न्यायमत दिलमें न हो रगवत ननफरत गैर से ॥ गर असर कुछ हो तो हो पैदा तेरी बैरागता ॥७॥ - - - (य)

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43