Book Title: Murti Mandan Prakash
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 10
________________ - - - (८) मगर लाखों बरसकी यादगारी की तो सूरत है ।। १२ ।। | यूनियन जैकको लाखों झुकादेते हैं सर अपना ॥ है गो कपड़ेका टुकड़ा पर हकूमतकी तो सूरत है ॥ १३ ॥ वेद अंजील और कुर आन गो कागजके पर्चे हैं। मगर इक धर्मका रस्ता बतानेकी तो सूरत है ॥ १४ ॥ आबे जमजम आबे कोसर आबे गंगाको आखोंसे ॥ लगाते किस लिये हो वह भी इक माद्दे की सूरत है । १५॥ गरज़ जितने निशां दुनिया में अपना काम करते हैं। गो सब माहे की मूरत हैं मगर मतलबकी सूरत है।॥ १६॥ बिना मूरतके दुनिया में नहीं कोई काम चल सकता। न्यायमत ध्यान करनेकी भी कारण एक मूरत है ॥ १७॥ me - - चाल-कौन कहता है कि मैं तेरे खरीदारों में है। कौन कहता है कि बिलकुल बे असर तसबीर है। बल्के जादू जिसको कहते हैं यही तसबीर है ॥ १॥ राय पदमोत्तर को जिसने था दीवाना करदिया। देखलो वह द्रोपदीकी कागजी तसवीर है ॥२॥ सच कहो आखोंमें आजातेहैं आंसू या नहीं ।। सामने जिसदम हकीकतकी कोई तसवीर है ॥३॥ जोश आजाता है दूशासनपे क्यों हर एकको ।। द्रोपदीके चीरकी जब देखता तसवीर है ।। ४ ॥ | छोड़कर राजोंको संजुक्ताने स्वम्बरके विषे ॥ - - -

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