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गांधीजी के तीन बंदर
गांधीजी के तीन बंदर थे, बुरा न देखें, बुरा न सुने, बुरा न बोलें जैन दर्शन के भी तीन बोल हैं, पर को न देखें, न सुनें, न बोलें फिर तो पर का अथवा पर से कुछ कर सकना असंभव ! यह पर है क्या ? मैं भगवान आत्मा को छोड़ सारी दुनिया भर के जीव-अजीव ही है जीवद्रव्य, मुझे ही देख, मुझे ही सुन के जान, मुझ से ही बोल के जान मैं जीव स्वयं ही, स्वयं से ही, स्वयं में ही पूर्ण ज्ञानानंद, सुख शांतिमय हूं
मुझे पर द्रव्य में देखना नहीं, पर का सुनना नहीं, पर से बोलना नहीं मैं इस पर से संयोग अज्ञान वश ही कर कर के तो दुःखी ही होता हूँ चार गतियों का कारण यही अज्ञान और पर में झांकने का कारण भी जितना पर से एकत्व, ममत्व, कर्तृत्व, और भोक्तृत्व है उतना ही दुख दुख का कारण, दुख की तीव्रता और दुख का ही अनुभव है वास्तव में तो मैं मुझ में ही पूर्ण ज्ञानानंद, सुख शांतिमय हूं
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