________________
जिनशासन की मर्यादा एक एक द्रव्य तक जाती है जीव और अजीव दोनों द्रव्य ही स्वयं के ही क्षेत्र, काल और भाव में ही मर्यादित हैं. जीव, जीव में ही पूर्ण और अजीव, अजीव में
ऐसी लोकोत्तर मर्यादा को समझ तो लोकमर्यादा भी समझ में आयेगी जीव तू समाज में भी किसी भी और का चुराये बिना स्वयं में ही स्वयं के ही विश्वास से रहेगा तो इस भव में सुखी होगा
तेरा ही सत ज्ञान तुझे सत भरे जीवन जीने की शक्ति देगा लोकोत्तर मर्यादा को गहराइयों से समझेगा तो भवोभव सुधार लेगा इस भव में भी खुश और भवोभव में भी खुशहाल ही रहेगा
तू निर्भय, निडर, निश्चिन्त बन स्वयं में ही, स्वयं से ही खुशहाल हो उठेगा दुनिया तो हमेशा से है, और रहेगी. तू तो इन सबसे अलग तुझ आत्मा को पहचान तेरे ही शाश्वत तत्व को जान, मान, और देख भी सकेगा