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माँ और बेटा
एक माँ नन्हे बच्चे को खुद का ही दूध पिलाती है बाहर का कुछ भी उसे नहीं देती सो बच्चा स्वस्थ रहे अच्छे से बड़ा होवे वैसे ही जिनवाणी माँ भी अपने बच्चों से कहती है धर्म सीखो, नमो अरिहंताणं को याद करो और अच्छे से बड़े हो
बच्चा जैसे बड़ा होता है, माँ उसे बाहर का सिखाती है. खेलने, बढ़ने, बाहर स्कूल बगैरह लेकर जाती है. धीरे धीरे दुनिया का ज्ञान करती है. जिनवाणी माँ भी कहती है जय जिनेंद्र सीखो तीर्थंकरों को जानो. इनके चारित्र को, इनके भवों को, इनके पुरुषार्थ को पढ़ो, जानो, पहचानो
बच्चा और भी बड़ा होता है, माँ बाप उसे आगे पढ़ने के लिये परदेश भी भेजते हैं. दुनिया देखे अच्छी स्कूलों में पढ़े, होनहार बने. जिनवाणी माँ भी उसे सारे अशुभ से परे रखती है उसे शुभ सिखाती है. दया, दान, व्रत, तप, पूजा आदि का मुहावरा कराती है
बच्चे ने अब पढ़ लिया, घर आनेको तैयार है, तब फिर माँ बाप कहते हैं, उसे समझाते हैं बेटा घर और घर के धंधे तो हैं ही, तू थोडा बाहर का भी अनुभव ले कैसे ये दुनिया चलती है सीख ले, जिनवाणी माँ भी कहती है, भव्य जीव तू इस दुनिया को गौर से देख. इसकी अनित्यता को पहचान, इसमें भरे दुखों को भी समझ और जो तुझे सुख लगते हैं वे भी कितने क्षणिक हैं, तेरे प्रभु जैसे तो नहीं
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