________________
दुलारा, अतीन्द्रिय, समाया न जाय, ऐसा प्रेम ही है, प्रेम में ही डूब प्रेम में इष्ट-अनिष्ट भी नहीं, ऐसे प्रेम को दुनिया तो समझे नहीं वो तो भजन गाये पर मीरा और तुलसी जैसा प्रेम न करे
बस तू तो प्रेम में पड़ जा, प्रेम ही कर ले, सभी प्रश्न समाधान होते हैं प्रेम में दुनिया भले आंसू देखे, पर आनंद ही आनंद का अनुभव है प्रेम में निर्विकल्प, निराकारी, शुद्ध, बुद्ध, है ये प्रेम
प्रेम ही है कृष्ण, बुध्ध, महावीर या राम, प्रेम ही है परिपूर्ण आत्म तत्त्व प्रेम ही है भजन, पूजन, स्वाध्याय या पाठ प्रेम में ही, प्रेमी और मेरा प्रेम ऐसा विभाग ही नहीं
प्रेम ही गुण है, शक्ति है, शुद्ध साधन भी यही है सच्चे प्रेम में राग नहीं, द्वेष नहीं, उसमें तो सारे रंग मिल सफेद चांदनी ही है, प्रेम ही पूजा, प्रेम ही पूज्य, प्रेम ही शरणा है
प्रेमी को तू जान ले, छु ले, पूजा, अभिषेक भी कर ले लेकिन यदि तू प्यार नहीं करता, स्वयं प्रेमी नहीं बनता, तो तू जैन नहीं बनता विजयी नहीं बनता. बस सबको छोड़ या पकड़, बस तू तो प्रेमी ही बन
135