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इसी तरह यदि हमारी दृष्टि, चैतन्य की ओर झुकती है तो हमारे अमूल्य आत्मतत्त्व का ही वेदन है हमारे प्रभु के दर्शन होते हैं. शाश्वत आनंद, शांति, वीर्य का वेदन होता है. अंतर तो प्रकाशित हो जाता है
तो फिर मानव तुझ पर ही है तू कैसे अनुभव करे विचार करे, वेदन करे . तुझ निज पद का विचारे समझे, आत्मतत्त्व की महिमा ला उसकी ओर झुके तो तू आत्मा का ही वेदन कर शाश्वत सुख ही पाये
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