________________
इसीलिए खूब चेतावनी से, खूब धगस से, जोर शोर से, पूरी हिम्मत और निर्भयता से पुरुषार्थ करना है, कुछ भी हो मुझे डरना नहीं, मैं तो शुद्ध आत्मतत्त्व हूं मुझे तो कोई आंच भी न दे पाए, सो पूरी निर्भयता से पुरुषार्थ करना है जिनवाणी मिली, गुरुवाणी मिली, तो फिर गुरु भी हैं मिले, इस विश्वास के साथ
आगे ही आगे बढ़ना है. उस निर्विकल्प, सच्चिदानंदी, शुद्ध स्वरूपी तरफ ही प्रस्थान करना है मैं हूं ही पूर्ण, ज्ञानानंद, शुद्ध स्वरूपी तो प्रस्थान भी क्या ? पुरुषार्थ भी क्या ? आना नहीं, जाना नहीं, पूर्ण अकर्ता, अपरिणामी, स्वतंत्र, शुद्ध उसे करना ही क्या? जो है, वही है, बस एक बार मान ले तू सत को, फिर तो देखे सदैव तू सत को