________________
I
प्रभु भजन
प्रभु तुझे रोज भजते हैं, लेकिन प्रभु तू कौन जाना ही नहीं इस वाणी से भजते हैं, वो तो कर्मरज, प्रभु तू तो चैतन्य है इस शरीर से नमते हैं, वो तो जड़, प्रभु तू तो ज्ञानमय है राग भावों से जूं तुझे, प्रभु तू तो वीतरागी है
प्रभु तुझे भजूं तब एक क्षण तो तेरे शुद्ध स्वरूप को भजूं तूने ये स्वरूप मनुष्य भव में ही पाकर बताया, उसे तो याद कर, प्रणाम कर, भज कर, वही स्वरूप मुझ में ही निहारु तेरे निर्मल, शुद्ध, इस संसार से भिन्न को भी भज लूं
प्रभु तुझे भजूं तब तेरे अपार, असीमित ज्ञान को भजूं तूने कैसे तो इस ज्ञान को प्रगट कर बताया वो जानूं तू जैसा ज्ञायक है, आज प्रगट में, तुझे पूरी दुनिया है भजे वैज्ञाय छुपा है मुझमें, उसे भी तो याद कर लूं
प्रभु तुझे भजूं तब तेरे चिदानंदी, आनंद ही आनंद को भजूं तू प्रभु आनंदी और मैं व्याकुल, बेचैन, और हूं दुखियारा फिर जब याद करूं तुझे, लगे मेरा भी तो दुख है भागा इस आनंद को ही ग्रहण कर लूं, हर क्षण तुझे ही भज लूं
49