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आत्मार्थी तुझे तो दुनिया नहीं, निज आत्मा को जानना है, उसका अनुभव करना है
माना दुनिया है रंगबिरंगी बदलने वाली, पर तेरा आत्मतत्त्व भी है न ध्रुव, अविनाशी, आनंद से भरपूर, शांत और रमणीय उसे जानकर तो देख, उसका आनंद एक क्षण क्या, एक समय के लिये तो चख, फिर ही तू
वास्तव में, सच्चे रूप में इस दुनिया को जान पायेगा
ये दुनिया तो ऐसे ही अनादि अनंत चलती रहेगी
आत्मतत्त्व
तेरा आत्मतत्त्व भी शुद्ध, चिदानंदी शाश्वत है इस दुनिया का सही ज्ञाता - दृष्टा है, जो ज्ञानानंदी कहलाता है
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