Book Title: Mukmati Mimansa Part 01
Author(s): Prabhakar Machve, Rammurti Tripathi
Publisher: Bharatiya Gyanpith

Previous | Next

Page 13
________________ मूकमाटी-मीमांसा :: ix प्र. मा.- अब देखिए, यहाँ पर जो नव बौद्ध लोग हैं, दलित लोग हैं, हरिजन लोग हैं, वे मानते हैं कि हजारों वर्षों से उन्हें दमित या दलित किया गया है, उनका अनादर हुआ है । इससे उनके मन में एक हीन ग्रन्थि पैदा हो गई है । सो अब वे वैसा ही नहीं रहना चाहते हैं। वे आरक्षण करवाते हैं कि हमारे अधिकार ज्यों के त्यों रहें और हम नव बौद्ध भी रहेंगे, साथ ही अधिकार भी लेंगे। यह कहाँ तक उचित है ? आ. वि.- विकास का द्वार सबके लिए उद्घाटित होना चाहिए। लेकिन विकास इधर-उधर से नहीं आएगा अपितु उसी में होगा। हम उसमें निमित्त बन सकते हैं, सहयोगी हो सकते हैं। हाँ, यदि वह हमारे सहयोग का दुरुपयोग करता है तो वह ठीक नहीं माना जा सकता। वह बच्चा जिसके पास बद्धि है, उसके लिए हम उपकरण जटा सकते हैं। इस तरह सहयोग कर सकते हैं। यदि वह कमजोर बुद्धि का है तो विशेष प्रबन्ध कर सकते हैं। लेकिन जो विकास ही नहीं करना चाहता है और उसी अवस्था में रहकर विकसित व्यक्ति की तुलना में अपने आपको (आरक्षण की) बैसाखी पर बिठाना चाहता है, इससे तो अवरोध ही पैदा होगा । अवरोध तो होगा ही, उलटे जो मूल्यवान् पदार्थ या व्यक्ति होगा, उसका अवमूल्यन हो जाएगा। साथ ही जो मूल्यवान् नहीं है उसको भी मूल्य देना पड़ेगा । दारिद्रय का ही स्वागत करना पड़ेगा। प्र. मा.- आज तो देश भर में यही सब देखने में आ रहा है, दिखाई दे रहा है । प्रजातन्त्र के नाम पर अथवा सत्ता, ___ सम्पत्ति और संस्था के नाम पर हम वो कार्य कर रहे हैं जिससे कि अवमूल्यन ही हो रहा है। आ. वि.- आपने (दो दिन पूर्व) जो तीन बातें कहीं थीं – सत्ता, सम्पत्ति और संस्था... प्र. मा.- तो इन पर भी विचार होना चाहिए। 'सत्ता' से राजसत्ता नहीं। इस सन्दर्भ में सत्ता, सम्पत्ति और संस्था-तीनों को मैं एक बहुत बड़ा कंचुक मानता हूँ । इनसे मनुष्य की आत्मा का बहुत बड़ा हनन होता है । यह बात मैंने पहले भी कही है। मैं यह कहना चाहता हूँ कि प्रजातन्त्र से क्या आवश्यक रूप से वह होगा, जो आप कहते हैं ? बर्नार्ड शॉ ने कहा है : “डेमोक्रेसी इज मीडियाक्रेसी' - अच्छे जो लोग हैं, गुणवान् जो लोग हैं - आप जैसे जो लोग हैं, उन सबको नीचे उतरकर उनके साथ होना होगा, होना चाहिए या सब एक-से हो जाएँगे । सारा पानी मैला होगा या कि जो मैला पानी - नीचे के जो लोग हैं, वे सचमुच के बड़े हो जाएँगे? इस प्रजातान्त्रिक प्रक्रिया में आप क्या सोचते हैं ? आ. वि.- बुद्धि की अपेक्षा से, आर्थिक दृष्टि से और साथ ही शारीरिक आदि दृष्टि से भी उनकी जो योग्यताएँ हैं, वहाँ तक उनका मूल्यांकन होना चाहिए। इसका अर्थ यह नहीं कि उनका जो मूल्य हो उसे भी नज़रअंदाज़ किया जाय । किसी का सर्वथा अवमूल्यन ठीक नहीं। प्र. मा.- पर हो तो यही रहा है। आ. वि.- अवमूल्यन से तो वह सब एक प्रकार से समाप्त ही हो जायगा । प्र. मा. - आज तो वोट की राजनीति है । प्रजातन्त्र में संख्या का ही महत्त्व है, गिनती की ही महत्ता है । गिनती या ___ संख्या में तो निरक्षर लोग ही ज्यादा हैं। मैं तो समझता हूँ कि आज का जो राज्य है वह निरक्षरों का, निरक्षरों के लिए, निरक्षरों द्वारा चलाया जाने वाला राज्य है। ये संख्या वाले और निरक्षर होते जाएँगे, बजाय इसके कि ये साक्षर हों-समस्या यह है। आ. वि.- लेकिन साक्षर होने मात्र से क्या होता है ? साक्षर होने के उपरान्त भी यदि वे विलोम हो गए तो? कहा गया है : “साक्षरा: विपरीताश्चेत् राक्षसाः सन्ति केवलम्" - साक्षर विलोम भी हो सकते हैं और ऐसा होने पर वे केवल 'राक्षस' ही होंगे। मतलब इस ओर भी अपने को देखना आवश्यक है । सत्ता बहुत जल्दी करवट

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 ... 646