Book Title: Mantra Yantra aur Tantra
Author(s): Prarthanasagar
Publisher: Prarthanasagar Foundation

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Page 18
________________ मंत्र यंत्र और तंत्र मुनि प्रार्थना सागर आद्यमिताक्षर वर्तमान समय में लोगों का रुझान मिथ्यात्व की ओर द्रुतगति से आकृष्ट हो रहा है एवं अपनी शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, पारिवारिक, सामाजिक और राजनैतिक समस्याओं का निराकरण करने के लिए नाना प्रकार के कुदेवी-देवताओं की पूजा-उपासना आदि करने अथवा मिथ्या तापसी बाबाओं, पंडितों, पुरोहितों एवं महन्तों का प्रश्रय करके मिथ्या मंत्रयंत्र-तंत्र के जंजाल में फँसकर कुछ पाने की बजाय अपना सर्वस्व खो डालते हैं और दुखी पीड़ित होकर अपना जीवन व्यतीत करते हैं। अतः ऐसे लोगों को उपरोक्त समस्याओं से मुक्ति दिलाने हेतु हमने अपनी साधना, स्वाध्याय एवं अभ्यास के माध्यम से खोज कर कुछ महान मंत्रयंत्र-तंत्र आदि का संग्रह करके इस महान ग्रन्थ का निर्माण किया है। जो आप सभी के लिए अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगा। वैसे भी भारत वर्ष अनादि काल से ज्ञान विज्ञान की गवेषणा, अनुशीलन एवं अनुसंधान की भूमि रहा है। विद्याओं की विभिन्न शाखाओं में भारतीय मनीषियों, ऋषियों ने जो कुछ काम किया है, नि:सन्देह वह प्रशंसनीय रहा है। आदि मानव से आज तक क्या-क्या नहीं किया गया। अग्नि की खोज की, ट्रेन-प्लेन और मोटर की खोज की। यहां तक कि मानव को महावीर, नर को नारायण, इन्सान को ईश्वर और आत्मा को परमात्मा बनाने तक की खोज की है। इसी गवेषणा के परिणाम स्वरूप मंत्र-यंत्र-तंत्र का भी प्रस्फुटन हुआ है। मंत्र में असीम शक्ति होती है, आपने देखा होगा कि जब किसी व्यक्ति को सर्प काट देता है तो साधक मंत्र के प्रभाव से उस सर्प को बुलाकर उसका जहर निकलवा लेता है और उस सर्प डसे व्यक्ति को ठीक कर देता है। अथवा जब किसी व्यक्ति को भूत-व्यन्तर आदि की बाधा हो जाती है, भूत आदि उसे सताने लगते हैं, तो मंत्री साधना के बल से उसको बुलाकर पूछता है कि आपका नाम क्या है, आप इस व्यक्ति को क्यों परेशान करते हैं? आदि। फिर वह मंत्री (साधक) कहता है- अब आप इसे छोड़कर जाइये, इसे परेशान मत करिये। और जब वह भूत आदि नहीं मानता है तो साधक मंत्र के प्रभाव से उसे भगा देता है। जैन परम्परा के अनुसार मंत्रविद्या का संबंध अत्यन्त प्रचीन है तथा अङ्गपूर्व ज्ञान से = 18

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