Book Title: Mantra Yantra aur Tantra
Author(s): Prarthanasagar
Publisher: Prarthanasagar Foundation

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Page 44
________________ मंत्र यंत्र और तंत्र मुनि प्रार्थना सागर किन्तु योग्यता के अभाव में मन्त्र सिद्ध नहीं होता-यथा बाँझ स्त्री। इसलिए पूर्वाचार्यों ने मंत्र साधक में योग्य योग्यता होना भी बतलाई है। मंत्र साधना की योग्य विधि बतलाई है। कुछ लोग पुस्तकों में महिमा पढ़कर, दूसरों से महिमा-चमत्कार सुनकर मंत्र सिद्ध करने लगते हैं। किन्तु मैं उन लोगों से कहना चाहता हूँ कि अपने मन से, या पुस्तकों में महिमा पढ़कर कोई मंत्र सिद्ध न करें। योग्य गुरु से जो मंत्र-तंत्र के बारे में पूर्ण जानकारी रखते हों उन्हीं से मंत्र लेकर सिद्ध करें, अथवा अनर्थ भी हो सकता है। क्योंकि मन्त्रों को सिद्ध करना यानि सर्प की वामी में हाथ डालना है। मधुमख्खियों के छत्ते को हाथ से पकड़ना है, जलती हुई आग में कूदना है। क्योंकि प्रत्येक अक्षरों के, प्रत्येक मंत्रों के अधिष्ठाता देवी-देवता होते हैं जो गलती होने पर अशुभ भी करते हैं। मन्त्रबीज और मन्त्र बनाने के विधान में बताया गया है कि 'स्वर और व्यंजन पर अनुस्वार (') बिन्दु लगाने पर वह मन्त्र बीज बनता है। वैसे प्रत्येक कार्यानुसार मन्त्र और साधना विधि का उसके साथ उल्लेख रहता है। यदि न हो और आवश्यकता की पूर्ति करनी हो तो उस दशा में नाम के प्रथम अक्षर पर बिन्दु लगावें और नाम के साथ चतुर्थीभक्ति जोड़ें। नाम के आगे प्रणय और अन्त में नम: पल्लव लगाने पर वह उस देव का मूल मन्त्र बन जाता है- जैसे पारसनाथ- “ॐ पां पारसनाथाय नमः"। यह भगवान पारसनाथ का मूल मन्त्र है। ऐसे ही सरस्वती ज्ञान बीज (ऐं), कामबीज (क्लीं), मायाबीज (ह्रीं), लक्ष्मीबीज (श्री), मंगलबीज (ॐ) का सभी मन्त्रों के आदि में उपयोग होता है। (अपवाद को छोड़कर) इसी प्रकार अन्त में नम: का उपयोग होता है। किस मन्त्र का कहाँ किस रूप में उपयोग किया जाए यह प्रत्येक स्वर-व्यंजन में निहित शक्ति से ज्ञात होता है। मन्त्र में पल्लव की भी जानकारी होनी चाहिए। मंत्र के उच्चारण का प्रभाव भी साधक पर पड़ता है, वैसे भी मंत्र उच्चारण के आठ स्थान माने गये है- वक्ष, कंठ, सिर, जिह्वामूल, दांत, नासिका, ओष्ठ, और तालू। लेकिन यह तो स्थूल जगत की बात है। इसके पूर्व उच्चारण मूलाधार (शक्तिकेन्द्र) से प्रारंभ होकर तेजस केन्द्र पर पहुंचता है, वहाँ से आनन्द, विशुद्धि केन्द्र को पारकर तालू तक वही मंत्र पहुंचता है। पश्चात दर्शन केन्द्र (आज्ञाचक्र, भृकुटि के मध्य) तक पहुंच जाता है। तब तेजस्विता प्रकट होती है। मंत्र जाप अनेक प्रकार का होता है- जैसे मौन जाप, मुखर जाप, लेख जाप, एकाकी जाप, समुदाय जाप आदि। मंत्र की महिमा के बारे में पूर्वोचार्यों ने लिखा है मंत्रं संसारसारं, त्रिजगदनुपम, सर्वपापारिमंत्रम्। संसारोच्छेदमंत्रं विषविषहरं कर्मनिर्मूलमंत्रम्॥ मंत्रं सिद्धिप्रदानं शिवसुखजननं केवलज्ञानमंत्रम्। मंत्रं श्री जैन मंत्रं जप-जप जपितं जन्मनिर्वाणमंत्रम्॥ = 44

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