Book Title: Mantra Yantra aur Tantra
Author(s): Prarthanasagar
Publisher: Prarthanasagar Foundation

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Page 83
________________ मंत्र अधिकार मंत्र यंत्र और तंत्र मुनि प्रार्थना सागर ऋ ,ऋ, ष, ण, य, द, क्ष और र कठिन भेद और कार्य-कारण संबंध वाले कार्यों को करते हैं। शेष अक्षर मिले हुए तिल और चावलों के समान रहते हैं। मंत्र को जानने वाले मनुष्य अपनी बुद्धि से काम लें। अकार आकार का प्रतिषेधक है। अकार बिन्दु सहित होने पर शांतिक, पौष्टिक, वश्य और आकर्षण कर्मों को करता है। उ ऊ ऋ ऋ ए ऐ और अनिर्विष कर्म तथा व्यभिचार करते हैं। अकार सबका उच्चाटन करता है। खकार निर्विष कर्म को और विकल्प से वशीकरण करता है। धकार वशीकरण; किन्तु विकल्प से स्तंभन, भेदन और व्यभिचार कर्मों को करता है। चकार और छकार शांतिक और पौष्टिक को करता है और विकल्प से भेद और व्यभिचार को करता है। ज झ निर्विष करता है और विकल्प से स्तंभन और व्यभिचार करता है। आकर्षण को और विकल्प से व्यभिचार को भी करता है। वश्य और व्यभिचार को करता है व्यभिचार को करता है शांति और पौष्टिक करता है। ____ व्यभिचार करता है। व्यभिचार करता है। शान्तिक और पौष्टिक करता है। क्षोभ और स्तंभन करता है। सर्व कर्मों को और विकल्प से सब सिद्धि को करता है। सब व्यभिचार के कर्म और विकल्प से आकर्षण करता है। स्तंभन, वशीकरण, मोहन तथा विकल्प से निर्विष करता है। निर्विष करता है। शांतिक, पौष्टिक, वश्य और आकर्षण करता हैं। स्तंभन और मोहन करता है। वाणी की सिद्धि करता है। सब कार्य करता है। सब योगों को करने वाला है। = 83

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