Book Title: Mantra Yantra aur Tantra
Author(s): Prarthanasagar
Publisher: Prarthanasagar Foundation

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Page 85
________________ मंत्र अधिकार मंत्र यंत्र और तंत्र मुनि प्रार्थना सागर || २५. झं | पीत कृष्ण कपिल २७. टं في कि v foy शंख ३०. ढं रक्त ३१. णं कृष्ण - . ३२. त ३३. थं ३४. दं ३५. धं चन्द्र-बीज, काम्य और धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष को देता है, राज वश्य और आकर्षण कारक पु. मोहन, महाक्रूरस्वर, सर्वजीव भयंकर क्षोभन और चित्र कलंककारी, मृदुस्वर चन्द्रबीज विष मृत्यु, रक्षा, स्तंभन, मोहन, कार्यसिद्धि कारक गरुड़ बीज, विष नाशक, रक्षा, स्तंभन, मोहन, शुभस्वर ___ - कुबेर बीज, उत्तराभिमुख होकर चार लाख जप से सिद्ध होता है। धन-धान्य समृद्धि, शंख और पद्मनिधि को करने वाला, दुष्टनिग्रह, रुद्रशक्ति, वश्याकारी - असुर बीज और तीन लाख जप से सिद्ध होता है। शापानुग्रहहारी नपुं. अष्टवसुधा बीज, जपात् धन-धान्य समृद्धि कारक।पु. यमराज बीजं, मृत्युनाशनम्, सर्व कामादि साधन - दुर्गा बीज, वश्य-पुष्टिकारक नपुं. सूर्य बीजं, जय सुखकरं, रौद्र कार्यकारक, रौद्रदृष्टि - ज्वर बीजं, स्वर देवतां रौद्र कार्यकारक, रौद्रदृष्टि - वीरभद्र बीज, सूर्य विघ्न विनाशनं विष्णु बीज, धन-धान्य वर्द्धक, व्याधि, विष, । दुष्टग्रह विनाशक, शान्तिकारक ब्रह्म बीज, वात-पित्त-कफ-श्लेष्म नाशक वश्याकृष्टि प्रसंगप्रिय भद्रकाली बीज, भूत-प्रेत-पिशाचभयोच्चाटनं रौद्रकान्ति मालाग्नि रुद्र बीज, स्तंभन, मोहन, विद्वेषणकर भूत-प्रेत-पिशाचाद्यावाहननं अष्ट महा-सिद्धिकर, सर्वकार्य साधक वायु बीजं, उच्चाटन, व्यभिचार कर्मप्रिय, सर्वलोक प्रिय नपुं. = 85 = कृष्ण कषाय कृष्ण . ३६. ३७. पं व. ३८. फं ३९. बं ४०. भं ४१. मं ४२. यं अरूपी

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