Book Title: Mantra Yantra aur Tantra
Author(s): Prarthanasagar
Publisher: Prarthanasagar Foundation

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Page 88
________________ मंत्र अधिकार मंत्र यंत्र और तंत्र मुनि प्रार्थना सागर या ब्लौं ग्लैं क्षः फट् - शस्त्र बीज है। यः उच्चाटन और विसर्जन बीज है। विद्वेषण बीज है। श्लीं अमृत बीज है। सोम बीज है। हंस विष को दूर करने वाला बीज है। म्यूँ पिंड बीज है। क्षं कूटाक्षर बीज है। स्वी, क्ष्वीं, हंस:- वाग्भव बीज है। क्षिप ॐ स्वाहा- शत्रु बीज है। हाः निरोधन बीज है। ठः स्तंभन बीज है। विमल पिंड बीज है। स्तम्भन बीज है। वध बीज है। द्राँ द्रीं द्रावण संज्ञक हैं। ह्रां ह्रीं हूं, हैं ह्रौं ह्र:- शून्य रूप बीज हैं। बीजाक्षरों के लिए कुछ सांकेतिक शब्द:ॐ तार ध्रुव,वेदादि,नैगमादि श्रुत्यादि। ह्रीं माया, लज्जा, शक्ति, शिव, पार्वती, भुवनेश, गिरिजा- नाम और बीज है। वर्म, कवच, त्रितत्त्व, क्रोध, छंद बीज। ग्लौं नर बीज । कूच दीर्घ वर्म, दीर्घ तनुच्छद है। नमः शिरोमं, अग्निवाच, वनिता, अग्निप्रिया, दहनप्रिया, पावक, द्विठ: ठद्वयं है। आं ह्रीं कों ये तीन पाशादि- बीज हैं। एं, ह्रीं, श्रीं त्रिबीज है। तारा बीज है। : 88 घे hotes त्री

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