Book Title: Mantra Yantra aur Tantra
Author(s): Prarthanasagar
Publisher: Prarthanasagar Foundation

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Page 82
________________ मंत्र अधिकार मंत्र यंत्र और तंत्र मुनि प्रार्थना सागर समस्तयायोग- जिसमें पहले नाम और फिर मंत्र बोला जावे उसे समस्तया योग कहते हैं। विदर्भित- जिसमें मंत्र के दो-दो अक्षर और एक-एक साध्य के नाम का अक्षर आवे उसे विदर्भित कहते हैं। यह वशीकरण करता है। आक्रान्त- यदि साध्य का नाम चारों ओर मंत्र के अक्षरों से घिरा हुआ हो तो उसे आक्रान्त कहते हैं। यह सब कार्यों की सिद्धि, स्तम्भन, आवेशन, वश्य और उच्चाटन कर्मों को करता है। आद्यन्त- जिसमें आदि में एक बार पूरा मंत्र, मध्य में साध्य का नाम और अन्त में फिर पूरा मन्त्र लगाया जावे उसे आद्यन्त कहते हैं, यह विद्वेषण करता है। आदि और अन्त में दो-दो बार मंत्र का प्रयोग करके बीच में एक बार साध्य का नाम रखने को गर्भस्थ या गर्भित कहते हैं। यह मारण, उच्चाटन, वश्य, नदी स्तम्भन, नौका भंजन और गर्भ स्तम्भन में प्रयोग किया जाता है। सर्वतोमुख- जिसमें आदि और अंत में तीन-तीन बार मंत्र जपा जावे और नाम बीच में एक ही बार रहे उसे सर्वतोमुख कहते हैं। विदर्भ- सब उपसर्गों को शांत करने वाला सब सौभाग्यों को करने वाला तथा देवताओं को भी अमृत देने वाला है। जिसमें आदि में मंत्र और फिर नाम और फिर मंत्र इस प्रकार तीन-तीन बार किया गया हो उसे विदर्भ कहते हैं। यह सब व्याधियों को नष्ट करने वाला तथा भूत और मृगी के रोग को दूर करता हैं। विदर्भ ग्रसित- जिसमें साध्य के नाम के एक-एक अक्षर को विदर्भ रूप में करके पहले के समान आदि और अन्त में प्रयोग किया जावे उसे विदर्भ ग्रसित कहते हैं। यह सब कार्यों को करने वाला और सभी ऐश्वर्यों के फलों को देने वाला है। रोधन- नाम के आदि, मध्य और अन्त में मंत्र रखने को रोधन कहते हैं। मंत्र के अन्त में __ नाम रखने को पल्लव कहते हैं। __ बीजों का प्रयोजन ये अक्षर स्त्रीलिंगी हैं इ, ऊ, व, रू,ण। ये अक्षर विकल्प से स्त्रीलिंगी हैं- ऋ ऋ लू लृ ङ ज ण न म द ए ऐ उ ऊ। ये अक्षर विकल्प से नंपुसकलिंगी हैं- ज, य, म। शेष अक्षर पुल्लिगीं हैं। इस प्रकार अक्षरों के तीन प्रकार के गण करें। नाम का विकल्प से प्रयोग करना चाहिए। इस प्रकार नपुंसक अक्षर कहेंगे। ई, ष, ल लू और ऊ पीत अक्षर हैं। = 82

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