Book Title: Mantra Yantra aur Tantra
Author(s): Prarthanasagar
Publisher: Prarthanasagar Foundation

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Page 80
________________ मंत्र अधिकार मंत्र यंत्र और तंत्र मुनि प्रार्थना सागर य नैऋत्य देवता रूप भकार की शक्ति है। उदय होते हुए सूर्य के समान कांति, अनंत योजन प्रभा, सर्व व्यापि, अनन्तमुख, अनन्तबाहु, भूमि आकाश और समुद्र तक दृष्टि, सर्व कार्य का साधक, अमर और दीपन करने वाला, सब गंध की मालाओं और अनुलेप युक्त, धूप-चरु और अक्षत को पसन्द करने वाला, सब देवताओं में रहस्य रूप, सब काम करने वाला, प्रलय काल की अग्नि के समान चमकने वाला, सबका स्वामी, पद्मासन, अग्निदेवता रूप मकार की शक्ति है। नपुंसक, भूमि-आकाश और सब दिशाओं में व्याप्त, अरूपी, शीघ्र और मंद दोनों प्रकार की गतिवाला, प्रसन्नता युक्त, व्यभिचार कर्मप्रिय, सब देवताओं की अग्नि तथा प्रलय की अग्निरूप, तीव्र ज्योतिवाला, अनंतमुख, अनंत बाहु, सब कर्मों का कर्ता, सर्व लोकप्रिय, हरिण वाहन, गोलासन, अंजनवर्ण, महामधुर ध्वनि युक्त, वायव्य देवता रूप यकार की शक्ति है। नपुंसक, सर्वव्यापि, बारह आदित्यों के समान प्रभायुक्त, अग्निस्वरूप कोटि योजन तक कांति वाला, सब लोकों का कर्ता, सर्व होम प्रिय, रौद्र शक्ति, स्त्रियों के लिए पांच बाण, दूसरे की विद्या का नाशक, अपने कर्म का साधक और मोहन करने वाला, त्रिकोणासन, अग्नि देवता रूप रकार की शक्ति है। पीतवर्ण, वज्र-चक्र-शूल और गदा लिए हुए चार भुजाएँ, हस्तिवाहन, स्तम्भन और मोहन करने वाला, जम्बूद्वीप प्रमाण विस्तृत, मंद गति को पसन्द करने वाला, महात्माओं लोक अलोक से पूजित, सब जीवधारी रूप, चौंखूटा आसन, पृथ्वी को जीतने वाला, इन्द्र देवता रूप लकार की शक्ति है। श्वेतवर्ण, बिंदु सहित, मधुर नमकीन स्वाद नपुंसक, मकर वाहन, पद्मासन, वश्यआकर्षण, निर्विष और शांत कर्मों को करने वाला, वरुणादि देवतारूप वकार की शक्ति है। रक्तवर्ण, दस सहस्र योजन लम्बा, उसका आधा चौड़ा, चंदन की गंध, मधुर स्वाद, मधुर रस, चकवे पर चढ़े हुए, कमलासन, शंख-चक्र-फल और पद्म लिए हुए चार भुजाएँ, प्रसन्न दृष्टि, अच्छे मन वाले, सुगंधित धूपप्रिय, लाल हार, सुन्दर आभूषण तथा जटा और मुकुट पहने हुए, वश्य-आकर्षण-शांतिक और पौष्टिक कर्मों के कर्ता, अत्यंत प्रकाशित, विद्या को धारण करने वाले, चन्द्र आदि देवता रूप शकार की शक्ति ल व- श ष पुल्लिंग, मोर की शिक्षा के समान वर्ण, फल और चक्र लिए दो भुजाएँ, प्रसन्न दृष्टि, एक योजन लम्बा, इसका आधा चौड़ा, खट्टा रस, सुंदर गंध, कूर्मासन, 80

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