Book Title: Mantra Yantra aur Tantra
Author(s): Prarthanasagar
Publisher: Prarthanasagar Foundation

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Page 62
________________ मंत्र अधिकार मंत्र यंत्र और तंत्र मुनि प्रार्थना सागर वस्त्र विधान- नीले रंग के वस्त्र पहनकर जाप करने से बहुत दुख होता है। हरे रंग के वस्त्र पहनकर जाप करने से मान भंग होता है। श्वेत रंग के वस्त्र पहनकर जाप करने से यश की वृद्धि होती है, पीले रंग के वस्त्र पहनकर जाप करने से हर्ष बढ़ता है । लाल रंग के वस्त्र पहनकर जाप करने से लाभ होता है तथा यह श्रेष्ठ वस्त्र भी है। नोट- साधक को कोई भी मंत्र मिलाने पर ऋण या धन की संख्या आती हो तो उसमें मंत्र के प्रारम्भ में ॐ ह्रीं श्रीं या क्लीं इन बीजाक्षरों में से कोई भी एक बीजाक्षर जोड़ देने पर साधक को अवश्य ही मंत्र सिद्ध होगा और फल प्राप्त होगा । माह के अनुसार मंत्र जपने का फल चैत माह में मन्त्र जाप्य शुरु करने से सर्वपुरुषार्थ सिद्धि, वैशाख में- रत्न लाभ; ज्येष्ठ में-मरण; आषाढ़ में बन्धुनाश, श्रावण भाद्रा - क्वाँर (अश्विनी) में - रत्नलाभ; कार्तिक में- मंत्र सिद्धि, मगसिर (अगहन) में - मंत्र सिद्धि; पौष में- शत्रुवृद्धि व पीड़ा, माघ में - मेधा (बुद्धि) वृद्धि; फाल्गुन में सर्व कार्य सिद्धि होती है । वार के अनुसार जाप का फल रविवार को मंत्र जाप आरंभ करें तो धन लाभ, सोमवार को - शान्ति, मंगलवार को - आयुष्य क्षय, बुध को- सुन्दरता, गुरुवार को - ज्ञान वृद्धि, शुक्रवार को - सौभाग्य, शनिवार को - वंश हानि होती है। तिथियों के अनुसार जाप का फल १. प्रतिपदा को मंत्र जाप आरंभ करने से - बुद्धि हानि, २. द्वितीया को - बुद्धि विकास, ३. तृतीया को- शुद्धि, ४. चतुर्थी को - आर्थिक हानि, ५. पंचमी को - ज्ञान वृद्धि, ६. षष्ठी को - ज्ञान नाश, ७. सप्तमी को- सौभाग्य वृद्धि, ८. अष्टमी को - बुद्धिक्षय, ९. नवमी को शरीर हानि, १०. दशमी को - राज्य की सफलता, ११. एकादशी को - शुद्धता, १२. द्वादशी को - सर्वकार्य हानि, १३. त्रयोदशी को - सर्वकार्य सिद्धि, १४. चतुर्दशी को - तिर्यंचयोनि; १५. अमावस्या को - सिद्धि नहीं और पूर्णिमा को - सिद्धि होती है। नोट - जिन तिथि, वार तथा माह में कार्य वर्ज्य हैं उनमें भी विशेष योग जैसे सिद्धियोग आदि, विशेष नक्षत्र - पुष्य आदि में तथा तीर्थंकरों की पंचकल्याणक तिथियों में कार्य करने पर सफलता मिलती है । ( आचार्य विमल सागर जी महाराज की डायरी अनुसार) नक्षत्र अनुसार जाप का फल १. अश्विनी - शुभ, २. भरणी -मरण, ३. कृतिका - दुख, ४. रोहिणी - ज्ञान लाभ, ५. मृगशीर्ष - सुख, ६. आर्द्रा-बन्धुनाश, ७. पुनर्वसु- धन, ८. पुष्य- शत्रुनाश, ९. अश्लेषा - 62

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