Book Title: Mantra Yantra aur Tantra
Author(s): Prarthanasagar
Publisher: Prarthanasagar Foundation

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Page 69
________________ मंत्र अधिकार मंत्र यंत्र और तंत्र मुनि प्रार्थना सागर ८. मेष श ष स ह श्वान सिंह बिलाव कलियुग के सिद्धिप्रद मंत्र एकाक्षर के मंत्र, दो व तीन अक्षर वाले मंत्र, तीन प्रकार के नृसिंह मंत्र, एकाक्षर अर्जुन मंत्र, दो प्रकार के चिंतामणि मंत्र, क्षेत्रपाल मंत्र, यक्षाधिपति भैरव के मंत्र, गणेश मंत्र, चेटका मंत्र, यक्षिणी मंत्र, मातंगी मंत्र, सुन्दरी मंत्र, श्यामा मंत्र, तारा मंत्र, कर्णपिशाची मंत्र, शवरी मंत्र, एकजटा मंत्र, वामा मंत्र, काली मंत्र, नील सरस्वती मंत्र, त्रिपुरा मंत्र और कालरात्रि मंत्र कलियुग में सिद्ध होते हैं। मंत्र के अधिकारी द्विजवर्णों के योग्य मंत्र ___ अघोर मंत्र, दक्षिणामूर्ति मंत्र, उमा मंत्र, माहेश्वर मंत्र, हयग्रीव मंत्र, बाराह मंत्र, लक्ष्मी मंत्र, नारायण मंत्र, प्रणव के आरम्भ होने वाले मंत्र, चार अक्षरों के मंत्र, अग्नि के मंत्र, सूर्य के मंत्र, प्रणव से आरंभ होने वाला गणेश मंत्र, हरिद्रा गणेश पड़क्षर राम मंत्र, को और वैदिक मंत्रों को ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों को ही देने चाहिए। निंद्य कार्य वालों को नहीं। ब्राह्मण और क्षत्रियों के योग्य मंत्र सुदर्शन मंत्र, पाशुपत मंत्र, आग्नेयास्त्र और नृसिंह मंत्र को ब्राह्मण और क्षत्रिय को ही देना चाहिये अन्य को नहीं। चारों वर्गों के योग्य मंत्र छिन्नमस्ता, मांतगी, त्रिपुरा, कालिका, शिव, लघु श्यामा, कालरात्रि, गोपाल, राम उग्र तारा और भैरव के मंत्र चारों वर्णों को देने चाहिये। यह मंत्र स्त्रियों को विशेष रुपसे सरलता से सिद्ध होते हैं। इसकी अधिकारी चारों वर्गों की स्त्रियां ही होती हैं। वर्ण क्रम से बीजों के अधिकारी ह्रीं, क्लीं, श्रीं और ऐं बीज ब्राह्मण को देवें। क्लीं, श्रीं और ऐं क्षत्रिय को देवें। श्रीं और ऐं वैश्य को देवें तथा 'ऐं' बीज शूद्र को देवें। अन्यों को फट् बीज देवें। वर्णों के भेद वर्ण-रंग व मण्डल की अपेक्षा स्वरोष्माणो द्विजाः श्वेता, अबूमण्डलसंस्थिताः । कंतस्या भूर्भुजो रक्ता-स्तेजोमंडलसंस्थिताः । चूपूवैश्यान्वयौ पीतौ पृथ्वीमंडलभागिनौ। दुतु कृष्णत्विषौ शूद्रौ वायुमण्डलसंभवौ। अक्षर वर्ण रंग मण्डल - 69

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