Book Title: Mantra Yantra aur Tantra
Author(s): Prarthanasagar
Publisher: Prarthanasagar Foundation

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Page 58
________________ मंत्र अधिकार मंत्र यंत्र और तंत्र मुनि प्रार्थना सागर २३. मंत्र व मंत्र प्रदाता गुरु तथा परमात्मा पर पूर्ण आस्था रखना चाहिए तथा मंत्र-देवता व गुरु-प्रभु की उपासना श्रद्धा-भक्ति पूर्वक पूर्ण विश्वास से करनी चाहिए। २४. मन्त्र को गुप्त रखना अर्थात् मंत्र किसी को भी नहीं बताना चाहिए अन्यथा मंत्र सिद्ध नहीं होता। २५. जप की संख्या का परिमाण निश्चित कर लेना चाहिए, फिर प्रतिदिन उतनी ही जाप करना चाहिए। निश्चित संख्या से कम या अधिक जप नहीं करना चाहिए। २६. प्रतिदिन निश्चित समय पर निश्चित स्थान पर बैठकर निश्चित संख्या में जाप करें। २७. जाप करते समय प्रतिदिन दीपक अवश्य जलाकर रखें तथा सुगंधित अगरबत्ती या धूपबत्ती भी जलायें। २८. मंत्र में जिस रंग की माला लिखी हो उसी रंग का आसन यानि बिस्तर या वस्त्र (धोती दुपट्टा) आदि श्रेष्ठ माना गया है। २९. मंत्र संकल्प पूर्ण होने पर हवन अवश्य करें जितनी संख्या में जाप की हो उससे दशांस हवन करें तभी मंत्र आराधना पूर्ण मानी जाएगी। ३०. प्रमाद (आलसी) अवस्था में, अशान्त अवस्था में, व्याकुलचित्त अवस्था में जाप न करें। ३१. माला के शिखर वाले (मेरु के) तीन दानों का उल्लंघन करके जाप न करें। ३२. मंत्र जाप करते समय प्राण प्रतिष्ठित किया हुआ श्रीमहायंत्र अथवा मंत्रित श्री मंगल कलश, णमोकार मंत्र या जिनेन्द्र देव अथवा गुरु के चित्र (फोटो) को सामने रखकर जाप करें। ३३. सुआ-सूतक (सूतक-पातक) में भी जाप करना न छोड़ें। स्त्रियों को रजस्वला होने पर भी जाप करते रहना चाहिए। स्नान करने के पश्चात् मन्त्र का जाप मन में करें जोर से बोलकर न करें और न ही माला काम में ले। ३४. जप का संकल्प पूर्ण होने पर यथाशक्ति दान-पुण्य अवश्य करना चाहिए। ३५. सकलीकरण- मंत्र साधने के पहले सकलीकरण क्रिया अवश्य करें। सकलीकरण किसे कहते हैं ? निर्विघ्न इष्ट कार्य की सिद्धि के लिये विद्या साधन के इच्छुक साधक की जिससे रक्षा होती है, वह क्रिया सकलीकरण कहलाती है। २. निर्विघ्न इष्ट कार्य की सिद्धि के लिए अपनी रक्षा हेतु जो क्रिया की जाती है उसे सकलीकरण क्रिया कहते हैं। 36. मंत्रों के पंचोपचार- मंत्राधि देवताओं (मंत्र स्वामी)के पांच उपचार कहे हैं 58

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