Book Title: Mantra Yantra aur Tantra
Author(s): Prarthanasagar
Publisher: Prarthanasagar Foundation

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Page 36
________________ मंत्र यंत्र और तंत्र मुनि प्रार्थना सागर साथ-साथ परलोक भी बिगड़ता है। तथा अनेक जन्मों में दुख भोगना पड़ता है। अतः अशुभ मंत्र को छोड़कर शुभ मंत्रों को सिद्ध करें। लेकिन ध्यान रखें मंत्र को सिद्ध करना यानि सर्प की वामी में हाथ डालना है। क्योंकि मंत्र साधना में थोड़ी सी भी गलती हुई कि वह मंत्र सिद्ध नहीं होता अथवा उल्टा प्रभाव कर साधक को पागल भी कर सकता है या मृत्यु भी करा सकता है; इसलिए साधक को अपने गुरु से मंत्र लेकर ही सिद्ध करना चाहिए। देखा-देखी में या दूसरों के द्वारा प्रशंसा सुनकर अथवा पुस्तकों में महिमा आदि पढ़कर मंत्र सिद्ध नहीं करना चाहिए, क्योंकि इससे अनर्थ भी हो सकता है। अतः अनर्थ की आशंका वाले अशुभ मंत्रों को छोड़कर शुभ मत्रों को अपने गुरु से लेकर ही परोपकार के लिए सिद्ध करना चाहिए। * हमने इसे लोक कल्याण की उपयोगी वस्तु मानकर ही परिश्रम किया है। और जो मुझे स्वाध्याय, साधन, सत्संग से प्राप्त हुआ उसे आपके सामने प्रस्तुत किया है। यह प्राचीन ऋषि, मुनि, साधकों द्वारा उद्घाटित शब्द विज्ञान कहाँ तक प्रभावोत्पादक है, यह गवेषण वैज्ञानिकों, साधकों, चिन्तकों, अन्वेषकों और विचारकों पर निर्भर करता है। कहाँ तक इसकी सत्यता प्रमाणित हो पाती है, यह उन्हीं मनीषियों के अधिकार की बात है। लेकिन फिर भी यदि पाठकों व साधकों को इस ग्रन्थ से कुछ लाभ होता है या वह इस ग्रंथ से कुछ लाभ उठाकर अपने जीवन को सुख-समृद्धि, शान्ति और आनंदमय बनाकर प्रसन्न होते हैं तो मैं अपने परिश्रम को सफल सार्थक समझूगा। ___ अन्त में मेरी भावना है कि आपका जीवन पावन पवित्र व मंगलमय हो, आपके जीवन में सुख-शान्ति और आनंद का भंडार रहे एवं यह ग्रन्थ आपके लिए मंगलकारी सिद्ध हो यही मेरा आशीर्वाद है। ॐ ह्रीं नमः मुनि प्रार्थनास नोट :- १. किसी भी मंत्र, यंत्र, तंत्र का प्रयोग पुस्तकों में महिमा पढ़कर यसुनदेखी में सिद्ध न करें। २. मंत्र, यंत्र, तंत्र का प्रयोग योग्य गुरु के मार्गदर्शन में ही करें अन्यथा आपको हानि उठाना पड़ेगी, यहां तक कि बिना गुरु के दिये मंत्र सिद्ध करने पर अनेकों लोग पागल हो जाते हैं अथवा मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं; क्योंकि वह दैविक शक्ति को सहन नहीं कर पाते हैं। ३.गलत ढंग से मंत्रों का प्रयोग करने पर अथवा बिना गुरु के दिये मंत्रों का प्रयोग करने पर जो आपको हानि उठाना पड़ेगी उसके जवाबदार आप स्वयं होंगे, हम नहीं। ४. किसी भी मंत्र का प्रयोग गलत कार्य अर्थात् दूसरों का बुरा विचारने के उद्देश्य से न करें, क्योंकि इससे भारी पाप लगता है। ५. किसी भी मंत्र, यंत्र, तंत्र की कार्य सिद्धि में पूर्ण श्रद्धा का होना एवं विधि विधान पूर्णत: सही होना आवश्यक है। विशेष - ‘मंत्र, यंत्र और तंत्र' में कहीं अगर त्रुटि रह गई हो तो ज्ञानी पुरुष हमें अवगत करायें जिससे पुनः वह गलती न हो सके। - मुनि प्रार्थना सागर

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