Book Title: Mantra Yantra aur Tantra
Author(s): Prarthanasagar
Publisher: Prarthanasagar Foundation

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Page 28
________________ मंत्र यंत्र और तंत्र मुनि प्रार्थना सागर + + + + + + विश्लेशण :- ण्+अ + म् + ओ + अ + र् + इ + ह् + अं + त् + आ + ण् + अं + ण् + अ + म् + ओ + स् + इ + द् + ध् + आ + ण् + अं + ण् + अ + म् + ओ + आ + इ + र् + इ + य् + आ + ण् + अं + ण् + अ + म् + ओ + उ + व् + अ + ज + झ + आ + य + आ + ण + अं+ ण + अ + म + ओ + ल + ओ + ए + अ + व् + व्+ अ + स्+ आ + ह् + ऊ + ण् + अ + म्। इस विश्लेषण में से स्वरों को पृथक् किया तो- अ + ओ + अ + इ + अं + आ + अं + अ + ओ + इ + अ + अं + अ + ओ + आ + इ + इ + आ + अं + अ + ओ + उ + अ + आ + आ + अं+ अ + ओ + ओ + ए + अ + अ + आ + ऊ + अंपनरुक्त स्वरों को निकाल देने के पश्चात् रेखांकित स्वरों को ग्रहण किया तो शेष बचे स्वर- अ आ इ ई उ ऊ (र्) ऋ ऋ (ल) ल ल ए ऐ ओ औ अं अः। व्यंजन- ण् + म् + र् + ह् + त् + ण् + ण् + म् + स् + द् + ध् + ण् + ण् + म् + र् + य् + ण् + ण् + म् + व् + ज् + झ् + य् + ण् + ण् + म् + ल् + स् + व् + व् + स् + ह् + ण् । पुनरुक्त व्यंजनों को निकाल देने के पश्चात् शेष व्यंजन- ण् + म् + र् + ह् + ध् + स् + य् + र् + ल् + व् + ज् + घ् + ह्। ध्वनि सिद्धान्त के आधार पर वर्णाक्षर वर्ग का प्रति निधित्व करता है। अतः घ्= कवर्ग, झ्= चवर्ग, ण्= टवर्ग, ध्=तवर्ग, म्= पवर्ग, य र ल व श ष स ह । अतः इस महामंत्र की समस्त मातृका ध्वनियां निम्न प्रकार हुईं- अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ ल ल ए ऐ ओ औ अं अः; क् ख् ग् घ् ङ्, च् छ् ज् झ् ञ्, ट् ठ् ड् ढ् ण् , त् थ् द् ध् न्, प् फ् ब् भ् म्, य् र् ल् व्, श् ष् स् ह। यह उपर्युक्त ध्वनियाँ ही मातृका कहलाती हैं। जयसेन प्रतिष्ठापाठ में लिखा है अकारादिक्षकारान्ताः वर्णाः प्रोक्तास्तु मातृकाः। सृष्टिन्यास-स्थितिन्यास-संतिन्यासतस्त्रिधा॥३७६ ॥ अकार से लेकर क्षकार (क्+ ष् + अ ) पर्यन्त मातृका वर्ण कहलाते हैं। इनका तीन प्रकार का क्रम है- सृष्टि क्रम, स्थिति क्रम और संहारक्रम। णमोकार मंत्र में मातृका ध्वनियों का तीनों प्रकार का क्रम सन्निविष्ट है। इसी कारण यह मंत्र आत्मकल्याण के साथ-साथ लौकिक अभ्युदयों को देने वाला है। संहार क्रम कर्म विनाश को प्रकट करता है तथा सृष्टिक्रम और स्थितिक्रम आत्मानुभूति के साथ लौकिक अभ्युदयों की प्राप्ति में भी सहायक है। इस मन्त्र की महत्वपूर्ण विशेषता यह भी है कि इसमें मातृका-ध्वनियों का तीनों प्रकार का क्रम सन्निहित है, इसलिए इस मन्त्र से मारण, मोहन और उच्चाटन इन तीनों प्रकार के मन्त्रों की उत्पत्ति हुई है। बीजाक्षरों की निष्पत्ति के 28

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