Book Title: Mahavira Nirvan Bhumi Pava Ek Vimarsh
Author(s): Bhagwati Prasad Khetan
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 7
________________ प्राक्कथन प्रो० कृष्णदेव जेनरल कनिंघम भारतीय पुरातत्व के जनक होने के साथ-साथ भारतीय इतिहास के महान 'द्रष्टा' भी थे । भारतीय पुरातत्त्व का विशाल भवन उन्हीं की रखो ठोस आधार-शिला पर खड़ा है। साहित्यिक एवं ऐतिहासिक साक्ष्यों, च्वानच्चाङ् के यात्रा-वृत्तान्त तथा पुरातात्त्विक अन्वेषण के आधार पर नालन्दा, श्रावस्ती, कुशीनगर, वैशाली तथा कौशाम्बी प्रति अनेक प्राचीन स्थलों की पहिचान उनकी अनुपम प्रतिभा और अन्तदष्टि का परिचय देती है। मल्लों की राजधानी पावा का देवरिया जिला स्थित पडरौना से समीकरण उसी माला की एक कड़ी है । पावा समद्ध और प्रसिद्ध नगरी थी और उत्तर भारत के एक महापथ पर गण्डकी नदी के तट पर अवस्थित थी जिस पर प्राचीन भारत के सन्त, व्यापारी एवं यात्री यातायात करते थे। पावा को तीर्थंकर महावीर का निर्वाण-स्थल होने का गौरव प्राप्त था। वैशाली से कुशीनगर की अन्तिम यात्रा के दौरान बद्ध ने वहीं आखिरी पड़ाव किया था और यहाँ के नागरिक-चुन्द का आतिथ्य ग्रहण किया था। इसी यात्रा के दौरान बुद्ध ने आलार कालाम के शिष्य पुक्कुस मल्ल के नेतृत्व में ५०० गाड़ियों का काफिला कुशीनगर से पावा की ओर जाते देखा था। जैन-ग्रंथों के अनुसार पावा में हस्तिपाल नामक राजा की रज्जुकशाला थी। "सुमंगल विलासिनी" टीका के अनुसार पावा कुशीनगर से तीन गव्यूति अर्थात् १२ मील की दूरी पर था। ये सभी लक्षण पडरौना पर घटते हैं जो गण्डकी नदी की धारा पर अवस्थित कुशीनगर से १२ मोल उत्तर, उत्तर-पूर्व में है। यहाँ अनेक पुराने टीले हैं और कनिंघम की खुदाई से दो स्तूपों तथा एक विशाल विहार के प्रांगण के अवशेष मिले थे। अनेक प्राचीन वस्तुएँ तथा मूर्तियाँ यहाँ उपलब्ध हुई हैं जिनमें सबसे पुरानी यक्ष को शुगकालीन खंडित मूर्ति है जो लखनऊ संग्रहालय में रखी है। मूर्तियों में अधिकांश बौद्ध और जैन धर्म की हैं, जो इंगित करती हैं कि यह प्राचीन बौद्ध और जैन तीर्थ-स्थल था। पावा के निकटवर्ती सठियांव-फाजिलनगर में भी प्राचीन स्तूपों के अवशेष मिले हैं जिनसे कार्लाइल को भ्रम हो गया था कि पावा वहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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