Book Title: Mahavira Jain Vidyalaya Rajat Jayanti Mahotsava
Author(s): Mahavir Jain Vidyalaya Mumbai
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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श्री महावीर जैन विद्यालय-अंजलि यदि यह योजना आजतक कायम रही होती तो ४६ वर्ष में कितनी रकम हो जाती. वाचक धुंद स्वयं हिसाब लगा लेवें ! भावि भाव दो चार वर्ष में यह योजनाभी निष्फलसी होगई !!! ज्यों ज्यों श्रीआचार्य देवके वियोगको समय वीतता चला, लोगोंके दिलों से बात विस्मृत होती गई. दैवयोग १९६४-६५ ई. सन १९०९ में शहर गुजरांवालामें पंडितोंकी जरूरत पड़ी उस वक्त, पाई फंडकी जो थोडीसी रकम जमा हुई थी, आग्रावाले बाबू दयालचंदजीकी मारफत पंडित वृजलालजी आदि विद्यार्थियोंको मददमें दी गई थी. उस के फलस्वरूप, पंडित वृजलालजीने श्रीसंघ पंजाबके दिलमें अच्छा प्रभाव पैदा किया जिसमे श्रीसंघ पंजाबकी फिरसे आंग्वें खुली. जिससे कइ एक शहरों में छोटे छोटे पायेपर " श्रीआत्मानंद जैन पाठशाला" कायम हो गई. जिनमें आजतक वृद्धि होती हुई उच्चस्थानमें एक अंबालाकी ही पाठशाला नजर आ रही है, जो मिडलमे हाई और हाईसे कालेज तक पहुंची है ! या श्रीगुजरांवालामें श्रीआत्मानंद जैन गुरुकुल ! यह भी एक निश्चित बात है, फरसना जोरावर होती है जो कार्य जिस निमित्तसे होना होता है वह निमित्त अवश्य मिल जाता है. मेरा इरादा श्री सिद्धाचलजी तीर्थकी यात्राका हो गया. १९६४-६५ का चौमासा सद्गत आचार्य महाराज १००८ श्रीविजयकमलसूरीश्वरजी तथा १००८ उपाध्यायजी महाराज श्री वीरविजयजीके साथ गुजरांवाला शहरमें करके चौमासे बाद श्री सिद्धाचलजीकी यात्रार्थ विहार किया. पालनपुर पहोंचकर वहां ही चौमासा किया. चौमासेके बाद राधनपुरनिवासी शेठ मोतीलाल मूलजीकी विनतीसे उनके श्रीसिद्धाचलजीके संघमें जानेके लिए राधनपुर जाना हुआ. राधनपुरमें मेरी दीक्षाके समयसे सेठ मोतीलालका मेरे साथ धर्मस्नेह था. मैंने उनसे आचार्य भगवान् न्यायांभोनिधि जैनाचार्य १००८ श्रीमद् विजयानंद सूरीश्वरजी श्री आत्मारामजी महाराजजीकी अंतिम इच्छा प्रकट की. शेटजीने जवाब दिया आप कभी बम्बई पधारें तो सब कुछ हो सकेगा!
इसी धूनमें १९६९ विक्रममें मेरा बम्बईमें जाना हुआ, श्रीसंघने योग्य स्वागत किया, लालबागके उपाश्रयमें उतारा दिया, चौमासाकी विनती हुई, सानंद चौमासा बीत गया. चौमासा पूर्ण होनेपर विहारकी तैयारी की, श्रीसंघने, थोडासा समय और बिराजनेकी कृपा होवे तो अच्छी बात है, विनती की, जवाब में कहा गया साधु को चौमासा बाद रहने की शास्त्राज्ञा नहीं है, हां यदि कोई अधिक लाभ होता दिखाई देवे तो रह भी सकते हैं ! श्रीसंघने कहा आप हमारे लायक कोई ऐसा काम फरमा जिसमें आपको भी शास्त्राशा का बाध न आवे और श्रीसंघकी इच्छा पूर्ण होने पर श्रीसंघको भी लाभ होवे.
श्री संघका उत्साह देख कर मैंने स्वर्गवासी गुरुदेव आचार्य भगवान्का अंतिम संदेशारूप अंतिम भावना श्रीसंघ के आगे प्रकट कर दी! श्रीसंघने सादर स्वीकार कर ली ! जिसका फलस्वरूप श्रीमहावीर जैन विद्यालय कायम हुआ, जो फलेफले बम्बई शहरमें जैनोंके लिए एक गौरवका सूचक है !