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ཚུལ་ཚུ་ བྱཱ ཨཱལཡ་ दोनों कुमार-
जीत के मुह में नहादेव का घर
कि एक हत्या की है जो माकेलेलही जन्मी विनोक- के हो है और
नाम बाले हि । अदुमय से ओलहिन बने ।। बाई अल्बदो शाजा है. इनके सामने विजय से रहना। बोलो कुमार--बहुत का ।
दोनों कन्या उमेत रजा कुमाया भने हैं। राजा--(दोनों के खेलके )
धारे तेज बुलन कौन जानि इतनाह पर।
नहे यजमात ए क्षत्रिय बालक । बोट हैं चूमत बान के मुख दो दिलिप कसे है नुनीरा ! ओढ़े हैं खाल हरू, मृग को अति पाइन भस्म लगाये शरीर ! मूसी और पले काटे तन बांधे जोट के रंग को चीरा॥ अक्षको माल लाईक हाथ में पोपलोड गहे वनु धीरा दोनों कन्या--- कुलार तो बड़े सुन्दर है! राजा-- आगे बढ़ने महात्माजी प्रसाम । विश्वा-या बड़े प्रानन्द की बात है कि तुम कुशलसमेत आगये। कहो तो,
करत यज्ञ निजवंशगुरु शतानन्द के साथ।
हैं निर्वन कुशल लाहेत कै मिथिलापुरनाथ राभा-तपली धुरोहिन लोन माई की कुशन्त में क्या सन्देह है। जिसके भला चाहनेवाले आपसे सिद्ध महात्मा हैं। दोनों कन्या महाम हम तुम्हारे प्रणाम करती हैं