Book Title: Mahavira Charita Bhasha
Author(s): Lala Sitaram
Publisher: National Press Prayag

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Page 119
________________ २० নাম্বারোপ নিধল বিপ বিহা । .न्या सजन एक बार सिंहगरम जय जय देख के अरे विमानराज कैसे बन रहा है। विवरण-महाराज सा नाम पहाइ बहुन ऊँचा बाच ने गया है। इस के आगे प्राव है इस के पार बनने के लिये विमान भी मध्यम लोक से कुछ दूर जा रहा है । लहानबह जगह देखने की है जहां विष्णु के पैर पड़े थे : सोल स्पा----2 राम- देख के, जिन्द के भानुशतन्याना: प्रमट देवो तेजानिशन्दा इतन्य लोई मूरनिया चदत यान ने नि हमारे {सव खिड़की से प्रणाम करते हैं। सीता-(ऊपर देख के अरे क्या दिन का भी सार देर पड़ते हैं। राम-रानी तारे ही हैं। दिन का सूरज को बम से नहीं देख सक्त इतले ऊँचे चाहि आने से अध बह बात नहीं रही। माता-(कौतुक से } अरे आकास तो बाम या ज्ञान है इस में मानों फूल खिले है। राम-(चारों ओर देख के ) जगत का तो कुछ भार पार समझ में नहीं पाता। दुरी वस निगरे नहीं महि लरिवाहि पहार देखि परत आकास को बस्तुन प्रगट अभार : सुनीव-महाराज भाई के स्नेह से मैं खिड़ी ना हो गया थः तब इधर उधर भटकता यहा रहुँचा था।

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