Book Title: Mahavira Charita Bhasha
Author(s): Lala Sitaram
Publisher: National Press Prayag

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Page 120
________________ प्राचीन नगिनाला के ईस अहः हम लोग हुन दिन तक रह चुके हैं तो भी इसे - छोड़ने को कहीं शाहता; छन्द कहि काजल जिया ཀཱ'ཨེg ཙྪི རྣཚུ་ ཧུ ཨུ ཞུ ། ། फेंक दुन्दुभि हाइहाँ करि चरनमहा। यहाँ रानि के भीर हनूमता निहाल स्वीता--( आपडी श्र! या मेरा दुपट्टा हनुमान जी के हाथ में सार्यपुत्र के यही देखा। दाम-सुधारने रालो नहीं जब हम लोग तुम्हारे जाने पर या फिर रहे थे तो अनसूया का दिया दुपट्टा पहिला दिन मिला था. तन मह मानहुँ कपूरपागा । मन महें अमियवृष्टि लम मा दृमन हेत जनु लारद चन्दा तेहि देखत में लछौ अनन्दा । (लीता लजाती है। लक्षारण-जो, मृधराज पितु के बड़ मोता। इह लरि भये पंख भुजीता। घोधि वृद्धपन अर्जर गाता। लहरे विमल अस निघदाता सीता--( प्रापही आप) हाय मेरे कारन ऐस ऐसे लोगों की ऐसी दशा हो गई। सुनीत----महाराज हम लोग दंडक बन के आगे बढ़े पा रहे प्राये दन काज नाक कान निज बहिन के । बिनले सहित समाज दूधन त्रिलिरा इह ।। सीता--{ कोपती हुई ) अरे फिर भी राक्षस सुन पडते है। राम-रानी डरी मत अव उनका नाम ही रह गया है

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