Book Title: Mahavira Charita Bhasha
Author(s): Lala Sitaram
Publisher: National Press Prayag

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Page 124
________________ प्राचान नाटक मशिमाला चले जानो लिजमार दिलि रुको न डगर संहारि। अधतोपति ज्योति ऋषि इखत राह तुम्हारि भी लिपक्रिया करके दो घंटे में आते हैं। दोलाजो गुरू जी की आज्ञा (विमान फिर चलता है। नाम-वाह महात्मा भी स्नेहवस होते है जिसको महिमा से नरस्या और वेद पाठ से जो थोड़ा भी अवकाश मिना तो अयोध्या ब्रायेंगे। और ठीक भी है ऐसे लोग तो तपोवन के हरिन और पड़ों घर करुणा करते हैं मनुष्यों की कौन बात है, विशेष करके यो भानुकुल भूपधर केवल जन्म हमार। अस्त्र शस्त्र सब के लहो इन सन ज्ञान अपार। विभीषण- देख के ) यह काा है जो घर ले दिसा एसो जा रही है जैसे पानी सा बरस रहा है। (लब अचरज से देखते हैं) राम----( सोच के } हम समझते हैं कि हनुमान जी से हम लोगों के माने का हाल सुन कर लेना समेत भरत पा रहे हैं। ( हनुमान जी पाते हैं) हनुमान-(पांच घड़ के महाराज, करत रहे बैंड भरत प्रभुचरितन के ध्यान । सुनि मे लन व प्राममन तुरतहिं कीन्ह पयान ।। स्टत राम वांधे जटा चीर घर निज अङ्ग। हर्ष सहित प्रावत इनै प्रभु मंत्रिन के सङ्ग ।। राम-प्रसन्न हो कर ) बड़े प्रानन्द की बात है कि बहुत दिन पर आज भाई का हाल मिला। नमण-बड़े चाव से ) हनुमान जी, भाई कहां हैं। हनुमान ---सेना के आगे जो पांच छः जने हैं उन्हीं में भरत Ur सीता देखफर ) मरे इनका रूप कैसा हो रहा है

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