Book Title: Mahavira Charita Bhasha
Author(s): Lala Sitaram
Publisher: National Press Prayag

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Page 51
________________ 불화 BAT तो सुनो। satyant महाबारचरितया ३ मी महाराज द का कहते हैं और यह भी हे मंगल प करो शांति ि लाभवेद के मंत्र वामदेवमुजिहित सब शिम्य जीवन के कना । नऊ गले लगा के बाहर निकाल देशा परगुरु देखी ब्रत्रियो का पाता वत्मा कैला गरजना है यह क्या करेगा। अक्षी हे कलराज और विदेहराज के पाले बाम्हन और सात कुपन और दीयों पर रहनेवाले क्षत्री, हमारी बात सुनौ। तपका के हथियार का जोहि काहि मह हो । क समुझे निज निज वैरी प्रत यहि दिन भो कहाँ सेोड़ 8 बिन सोर करि जगत विनय औ राम | दोड कुल के सब लोग हति स परशु विश्राम १ परदे के पीछे ) परशुराम. परशुराम तुम बहुत बढ़ते जाने हौं : परशुराम - अरे यह तो हमको वाने का जनक बिगड़ रहे हैं। { जनक श्राता है परशुः जनक-मलत सकल विज शत्रुपक्ष चोपन परमव्रत की ज्योति सांहि नित ध्यान लगाये ॥ वो गृहस्थी माहिं जु कत्रिय तेज ण्डा : प्रगट होय सो वापत कर सन कोदंडा || -अजी जनक, तुम श्रर्मिक प्रति वूढ वहे परनाथ हम 1 बेद पढायो तोहि सूर्यकर शिष्य वध | www.ale 'जोन जानि यहि हेत करों आदर मैं तो तू केह दित भय छांडि कहत भय त्रचन कठोरा ? . 1

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