Book Title: Mahavira Charita Bhasha
Author(s): Lala Sitaram
Publisher: National Press Prayag

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Page 59
________________ Ye Mer tre भारतिमाश नाय नेल लखि दे. का नाही; , अति चंड नुरपनि लन निशा के हौं । हम माल्य घटी र बाहुना है और झती है। इली ले बुम चि की बडाहट ताले है : ही कटु बीच कयनो इनहि सना। कबहुँ सो हमरे हाय रे दूर पर मई रजाहित नित्य नई नियुक्ति सं निज लगनाइजेहि कवि कनिदेनलाली सपनि । मैं डरत लार मनाई सो रहत श के निकट यति । कुल्लक दिन रात लोबाही करता है और उसकी चाल भी ही नहीं है. तो इसका होना न होना बराबर हैं : विभोपा कु कामम लोचता है और इन्ही गुना से लोग उन्ले साहले भी है । खरदूषण अपने कुरन की चाल बद के राजा की सेवा करते हैं। उन्हें कुछ भक्ति तो है नहीं जैसे ब लर के गाय दुहते हैं ही वह रावन में अन खोचा है : अब काशित साई दिया गया तो वह भी वैसी ही बात लावते सुभाते है जिससे भला न होटेलो र दो घर की तले माता है रान तो बढ़ाई भर करे सब बिगड़ जाय। किसी ने सा कहा है कि जब किसी पर बढ़ाई होती है तो घोड़ा संकट सी उसके लिये पहाड़ हो जाता है और कुछ बनाये नहीं बनता { विसीपरा का दंड देनेही से काम बनेगा भी प्रकाशन हो । बुलेनुले कोई शेप लगा के उसे मार डालोदा चुपके से इसे सरवा डालो। या बन्दीघर में बन्द कर दो या बेल ले निकालो । ? प्रकाश रावलों के बहुत बुर लगेगा । माकि वह उसको मानते है

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