Book Title: Mahavira Charita Bhasha
Author(s): Lala Sitaram
Publisher: National Press Prayag

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Page 58
________________ Fearनयन ৪ ল ল হিল্প रानी बनाने का मन किया है लेल का नहीं सो उस समय भी हो जाय और बातमी निकल पावैगी। गु लाल के साथ रहने ने मा हो मान्यबतुर भत्र व्यवहार में धीर सो राम समान म सन्त बोईड जो, बरिय हुन पर ध्यान !! पूर्ण ----मुझे तो दोनों नहीं की जान पाते । एक तो दशरथ * ME दी दूर है, तब हम लोगों के पास आजायगा और दूसरे अनी हम से उस ले और नहीं है नत्र स्त्री के कारन बड़ा कडा बैर हो जायगा। माल्य ---धरती तो सब मिली ही है। जिसने सुन्दर और उप. सुन्दर लड़कों के लंगो साथियों के रोंडाला और ताड़का कभार उससे बैर होने में ना और चाहिये । एक बात और भी है जिला बाम और रावण का वैर छूट नहीं सका। देखो সুল সুর লীজ হইছি কিন্তু দা । लहि संग होइन साम जो बधि बन्धु शनु हमार है । हि देव मानत ईस तेहि धनदान में दीजे महा। नहिं चले तेहि संग भेद सब इक दंड ही साधन रहा। जब ऐसा ही है तो सीता हरने के लेवाय और क्या कर सके वली शत्रु को दंड नहिं होजा जनाय । विधि विपि ताकी हानि नित करिबो उचित उपाय । हर तासुरी जब नारी। देहे जीव, लाज बस मारी। ক শু শু যষ্টি দলীল। करि है सन्धि राम दीना और अपमान बस जो खोजिउ पुलस्त्यसलंहार को सो रोकि है महि सिंधु हूँ रवि सरिस तेल अपार को।

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