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केहि दिनी धर्मविध जगतृष्य अतिथि सेनेवर सामा • कोहि कहीं महंगी ताहि मैं अहानी : S दूत से सुना है कि
धमाके मचन्द्र के पास बेजा है। का राज देने का कहा। अब इसी तो कब ( चल कर ) अरे कार्ड है.. जिन जोत्यो भृगुनन्दन रामः । सत्य धर्मप्रिय जो गुलधामा । अतिसुन्दर तेहि नवनवाहा . मावत वहाँ याति कपिनाह नैनन कहे ताह निज बाजू । निवरै आलु गर्न कर खाजू
-भैया लक्ष्मण | कह दो कि हम यहां हैं । लक्ष्मण-भाई यह खड़े हैं आप चलिये । बाली-तुम भी लक्ष्मण हो । लक्ष्मण- जो हो । ( दोनों पास जाते है वाली - ( आप हो आप }
पुरुपसिंह चरित अभियना । वीर धर्मद्दत यह मा
जो नित अद्भुत चरित दिखाचन: आगे के सब वरित दिपावन ||
राम
महावीरक
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श्रीक ने भी उसे आश्रम के पास है
( प्रकाश ) राम,
सुख मिलत होत चर्च तोहि लखि दु:ख पुनि पावत हिथे । इन दुगन तक छत्र देखि सुन्दर रूप मित्र मन भरि लियो । तब लंग सुख हमको बड़ो नहीं मन बिनतंत्र न कीजिये । जेहि हाथ जीत्यो परशुधर तेहि हाथ अब धनु लीजिये
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