Book Title: Mahavira Charita Bhasha
Author(s): Lala Sitaram
Publisher: National Press Prayag

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Page 104
________________ प्राचान लायक माणिमाला चित्र-देवराज देखो देखो। बैठो गिरि के अंग सरिस रथ निशिचरलाहा। युद्ध करन के हैत छलक मन सहित उहाहा!! कहा जब करन नि जुटकारा दिसाम के चिरिन नजि वाजतनी सारा । इन्द्र --- ज, इन दोनों बोरों को समर की सामग्री रबर नहीं है। (घबट्टा के मातलि सातलि हमारा संग्रामिक वन्द्र जी के पास ले जाओ, हम राज के रथ पर बैठ जायगे } {लाही करते हैं। मातलि-जो स्वामी की प्रा । ( रथ लेकर बाहर जाता है। चित्र:-देवराज बड़ा गड़बड़ मच गया ? दोऊ ओर लो ज्यों चली असमारा। लगे शास्त्र के होन ज्योंहो महारा सबै बुद्धि औ जुट्टमर्शद छूटी। भिरे दौरि एकेक सों पांति टूटी ।। गहे पाय के एक के केस एका । हनी नुष्ठिका एक योधा अनेका ॥ कहूं रासे कीस साधा पछारें। हूँ दाबि के हाथ लौ मीजि डारें ।। जली देह सो रक्त की यो प्रयाहैं । सबै युद्ध भू की भई बन्द राहै ॥ भी, लागत वन समान हथ्यार शरीर सुबीरन के बिलगाहीं । हाथ उ छर सिर नाचत रूपड सबै यहि में परिजाहीं॥ युद्ध के आंगन बीच कही यह शैल को देखि परै जेहि माहीं। शत्रु को मार सो होय विहाल अनेकन कोरसे सर विलाही !! इन्द्र-गन्धर्वराज इधर इधर देखों, दन लगत बान प्रचंड सै उड़त मामिपखंड

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