Book Title: Mahavira Charita Bhasha
Author(s): Lala Sitaram
Publisher: National Press Prayag

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Page 107
________________ महावीरचरितमापा पथ तो हम समझते हैं कि बुरा हुआ : इन्द्र-अजी धर्मराज बमा बिगड़ा है। ये दोनों का धि के राजकुमार बड़े बीर है इनका कुछ नहीं बिगड़ेगा ! एकहि वार लाधि घटना। मारे सहल निशाचर और सहि समर दशानन भाज। बोरन सई भूपन सम राहत चित्र-देवराज बहुत से एक ही पर बढ़ा दौड़े उस पर ई तो समझ लेना चाहिये की जनसंख्या के अधीन नई अचरज से ) यह देखिदे देवराज जो। বলি ঔ জন্তু স্বাভ। ইংখা লিছিলাখ रन कुम्भकर्ण अधीर ! आयो जहाँ रघुबीर । तन लागत भनित वानमा कील जरो समान यह दसा पितु की देखि । घवराय कुम्भ दिलेखि । आय पहार लमान । कै गर्व मूरतिमान अचरज से) वाह वाह बन्दरों की जाति भी कैसी होती है रह पाई धुल पड़े। झपटत रघुबर भोर दूर सन कुम्भ बिलोकी । बोधहि में चट पाय राह बानर इक रोकी ।। ध्यान से देख के) मा सुग्रीव है ? (लाच के) खंभ सरिल दोउ करन दाबि तेहि धनि पछारा। क्रोध अन्धदि बेहि पोति पीठी करिडारा डर जना के) कुम्सकणे सुतदला निहारी। झपटि हेलि तेहि वल भरि भारी॥ कटकि छुड़ाय हरी कपिराजा। तासुनाक सगिनीमनलाजा। इन्द्र गर ,धर देखो इधर,

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