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प्राचीन नाटक महिलाला
रामसेवा राम ने जो किया संसार के ऊपरही काम जिन भुजबल दीन्हा।
तीन लोक
यह महि मैं अपना आसिन कर कीन्हा ॥ बच्चो रहो हो योध होत हूँ लोकहा। मेरे कारन साज सेऊ परलोक सिधारा ॥
हाय कि जो फिर तुम ऐसे लोग कहाँ मिलेंगे हे पवत थे ।
तुम
लज्न- हाय मुझे भरते समय उनकी बात यात्र माती वन वन होइत फिरत है। जेहि तुम जड़ी समान । रावन दूतौही हरे से सीता मे। प्रान ॥
तना कह कर बेवारे परलोक को सिधारे ।
राम-मैया, इन बातों के कहने से छाती फटती है। समय- तो यही करना है जिस से उस पापी योनि ।
राम-हा का हो सका है जो इतनी बड़ी आपत् का सकें।
मेरे मन पहिलेहि रह्यो रात्रधनविचार : और कार से श्री तिनकर जोग संचार || केवल रावन के हने नहि कोधाशि बुझाय : करिहों ताके कर नास और उपाय ! ब भी मैया, समिट होय अति बाद हिये भोत सुनाये जारत बारह बार देह ज्वाला भड़काये ॥ भीतर डोवन पाय ज्वाल बाहर जनु शवै । सिgs बाडव आगि सरिस यह कि जये || लक्ष्मण - बलिये, यह तो दक्षिण की ओर जंगल फैले हु हाँ बड़ाये हुये हिरन के झुण्ड फिर रहे हैं और जहाँ मद गली पशुओं से खोटे मेरे हुये है उसी मोर चलें ।