Book Title: Mahavira Charita Bhasha
Author(s): Lala Sitaram
Publisher: National Press Prayag

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Page 57
________________ महावीरचरितारः जय शाश्व के शिष्यवर विश्वामित्र मुनीस: जय जय दिनपतिवसननि ऋध के इस अभय करत जगत को करिन मन्द : सरन देत लोक बह जयति का ? (घबड़ाए हुए शार्पशखा और माल्यवान नाते हैं। माल्य :-बेटी तुमते देखा देवताओं में कितना एका है कि इन्द्र आदि प्रापा ले बार बन्दीजन बने जाते हैं। शूर्प-जो आप समझते हैं उससे और कुछ थोड़ा ही हो सक्ता है ! मेरा तो जो कांप रहा है, अब क्या करना चाहिये। माल्या-करना यह है कि वह जो भरत कीमा रानी कैकेई है उसे राजा ने बहुत दिन हुवे दो वर देने को कहा था । आज कल दशरथ को कुशल छेम पूछने उसकी चेरी मन्थरा अयोध्या से मिथिला लेजी गई है, वह मिथिला के पास पहुंची है। उसके शरीर में तू समा जा और ऐसा कर (कान में कहता है)। शूर्प-तुम्हें विश्वास है कि वह अभागा मान जायगा। माल्या-यह भी कहीं हो लक्ता है कि इक्ष्वाकु के कुल में कोई मलमली छोड़ दे, न कि राम जो ऐसा वैरी का जय करने वाला है। शूर्प-तब क्या होगा। माल्य०-तब इस योगाचारन्याय से राम को दूर खींच कर राक्षसों के पड़ोस में और विन्ध्याचल के खोहों में जहाँ इन का कुछ जानाहुपा नहीं है, हम लोग इन पर सहज ही चढ़ाई कर लेंगे। दण्डकवन के मुनियों को विराध दनु आदि राक्षस सताने लगेंगे । तब यह हो सकैगा कि राम के साथ राजसी बड़ाई तो कुछ रहेगी नहीं, उस समय छलकर राम का उत्साह मन्द कर देंगे! यह तो तुम जानती ही हो कि रोवरण ले जो सीता को अपनी

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