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महन्द प्ररे पानी के कद इनै महता है, बड़ा ।
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बाग्लडर करे और द समक्ष हाबिरा।।
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केलको केस में सपना दिखावे का कुछ अटो लो का नोटो कोर्ट ने बिना
दरया है। नशरथ-परशुराम नुनो जी ।
जैले यहाँ जलकर धोर। तैले नहि तुम घरत शरीरा तुम अत्र वृथा गरि जनि करडू ।
हम सब करबीरज किमि हर परशु-तो फिर इशरथ- हम छमा न करेंगे।
परशुरु-तुम तो हमें और मालिक की माई तुक रहे हो : चूल गए कि जमदशि के लड़के पाराम जनल से स्वतन्त्र है। दशरथ-इसी ले तो जमा नहीं कर सत्तः ।
तडि मयाद करे जो कर्मा ! तिनहि सुधारच छत्रिय तुम मर्याद लॉषिपद धारे। हम छत्रिय तव दंडन हारे।। हाहु शान्त नतु एक छन माहीं । मिलहि वंड ताहि संशय नाही ! कई जप तप वाहन व्यवहार
कहँ यह ऋत्रिय जोग हश्यार परशुध-हंस के बहुत दिन पर परशुराम के साग खुले जो तुम छत्री उन को सुधारनेवाले मिले।