Book Title: Mahavira Charita Bhasha
Author(s): Lala Sitaram
Publisher: National Press Prayag

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Page 36
________________ Nur - बनारकलामामा है, भूलिए इकल लो त्रिवल समूल लहार ཨབྷཱ《ནག – འུ ཙྪཱཡེ ་ “ ག ཙ कमिटी ; ཤཱ་ཁཱ का हो. ལཾ ། ཨཱ अब है रिकेपा अधारा མཉྩ བྷཱུ ལ ི ི हे वे बिन शुद्ध भुके शिष्य प्रधान मला तिलौमायके के पनन लिन बखन लाहि, हाँ जामुन्यानो इलन भारी सोहि हवन बरजन लापी॥ माता-री ललिया यह क्या हुआ समिर-कुवरजी भापो मन । राम-देखो इन उनसे मिलने की बाइबड़ी है। रोकना अच्छा नहीं लगता किलो के उत्साह को रोकना न चाहिये। सलिया-हार परसुराल का तो हम लोगों ने सुना है कि उसने शार बार संसार में धूम के ऋत्रियों का नास करके अपना লীস্থ পুৰক্ৰিয ?? राम--- एक काम ने उनका महातम का हो सकता है निज बाहुबल नजीति हैहयनाथ आदिहि जस लिया। पुनि भूमि वार इकीस माह यह लोक विननिय कियो। ह्यनेबद्वार लनेत महि निज गुरू कश्यप केा दई । महि सिन्यु समता करन हेत हटाय जल अमन लई । परदे के पोछे ) तजि धीर दुख सन जाल बद सद द्वारपाल निहारही। जेहिं ओर चितवन रकत सूखत देह बदन विगारही। परिवार हा हा करत सब चहुँ ओर सन चिल्लात हैं। किये क्रोध भृगुपति हाय मीतर जात है।

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