________________
:
गा। उगा FB, . .
! "मी मानी :, "] ना .... . :: : कीTARE
Ti .::" नानी - .
. . :: समायोनी II, TA "
;": ..... नापीकी ' am
: : "I ना ना " " " " | गमगा गी: "मैं
नाग." । का गानी गोगा, का ! mi
।
: "
"
जिगने का नही। यानी | TT म प
. सामने । मंगरा, नाम गा
मा म्यावी, पांगा, न गारगे, पर कर ~~-7 स्वतारगा। मानेमाल
लीसिनी : मी गिनाला गया: । गरमाको गामार्ग, मेरी पीठ को भी देगी, मेरी ममीन
नीलिमान जा माता । लेकिन, शिवाय के नामने जिगपाले न rint. , पीटा है । फिर, फिनाव बच जाती है। उन शिवाय पर वनः गली : टी होती रहती है। और यह बनाना नौ महावीर के ठीमागने नही होगा कारण है कि शायद महावीर ने इनकार किया होगा। युस ने पहा होगा, तुम कितना मत । अर्थात् जो भी लिखा गया है नुनकर नहीं लिखा गया है। किसी के मुना है, फिर किसी ने पित्ती ने कहा है। महावीर अगमयं है करने में। फिर उनी सुनने वाले ने किसी ने कहा है, उग तीनरे व्यक्ति ने शिनी और ने कता है और तब दो-चार-पांच पीढियो के बाद वह लिखा गया है। उन पर टीकाएं चलती रही है, विवाद होते रहे है। ये हैं हमारे गास्न । अगर किसी को महावीर से चूतना हो तो इन शास्त्रो को पकडे । उसने मुगम उपाय नही । तो मैं गानो से महावीर तक पहुँचने की सलाह नही देता और न में स्वय ही उस रास्ते से उन तक गया हूँ। मैं बिलकुल ही अशास्त्रीय व्यक्ति हूँ, नही, कहना चाहिए कि में एकदम शास्त्र-विरोधी हूँ।
अगर सारे शास्त्र सो जाये तो साधु, सन्यासियो और पडितो के हिसाब से महावीर खो जायँगे । लेकिन क्या सत्य का अनुभव सो साता है ? का यह सम्भव है कि महावीर-जैसी अनुभूति घटे और अस्तित्व के किमी कोने में सुरक्षित न रह जाय ? क्या यह सम्भव है कि कृष्ण-जैसा आदमी पैदा हो और सिर्फ आदमी की