Book Title: Mahapurana Part 2
Author(s): Pushpadant, P L Vaidya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 5
________________ Bada भूमिका ११ पुष्पदन्त का कहना है भरत सभी शास्त्रों का जानकार था। कवि भरतको मन्त्र तन्त्र और संगीत का आवि कारक मानता है । उस भरतके समान राजा न हुआ है--और न होगा "तहु मरहहु सरिसु महाणिव‍ जगि ण हुम ण होस ।" 28/4. भरत राजाओं के पांच प्रकारके पारिथ्यका उल्लेख करता है। और कहता है कि जिनवर ऋषय क्षत्रिय कुलके विधाता हैं। 28 4-5 / वह बस लक्षण धर्मका कथन करता है । वह राजा धर्मका आचरण अनिवार्य मानता है । पुष्पदम् भरतके मुखसे यह महत्वपूर्ण कथन करवाते है "विश्कारण मारण जो राण मिसु मंfि हलहर संघाय है सिहंदि वहिवरायहं । कक्षा ६५, बुदुढणार विभय संतामण जो घण हरण करक भीसावणु । अणणीसास सिहिहि सो अणुवि विक्रय कम्में वह । लग्ग पण जियत्र दुखहुया सद बस देसु विसद्द परदेस ।" 2818. जो राजा अकारण बहाना बनाकर कृषक समूहों, बेचारे ब्राह्मण, बनियों को मारनेवाला, वृद्ध स्त्रियों और बच्चों को सतानेवाला है और भीषण घनका अपहरण करनेवाला है वह लोगों की आहोंकी ज्वालामें जल जाता है, तथा पापकर्मसे लिप्त होता है । लगी हुई दुःखकी ज्वालासे जीवित नहीं रहता। वह देश में नहीं रह सकता, उसे परदेश जाना पड़ता है । पुष्पदन्तसे छह सौ वर्ष बाद होनेवाले महाकवि तुलसीदास कहते हूँ "तुलसी आइ गरीब को कबहुँ न खाली जाय । मुए नाम के योग तँ लोह भस्म हुई जाय ॥ " पुष्पदन्तने राजाके पाँच चारित्र्य ( करने योग्य काम ) का उल्लेख किया है। उसका पहला काम है अपने कुलकी रक्षा करना। दूसरा काम है, इसके लिए शुद्ध माचरण होना जरूरी है । राजाको अपना विवेक शुद्ध रखना चाहिए। मिथ्या क्रीड़ाओंने राजाका विवेक चला जाता है अतः उसे बरहन्तोंकी शिक्षाएँ ग्रहण करनी चाहिए। कुगुरु कुदेव कुलिंग पसंगें 2816. प्रजाका निरीक्षण करना चाहिए; उसे न्यायका पक्ष 'णासह शिवम मिच्छारंगे तीसरे, राजाको धर्माचरण करना चाहिए, लेना चाहिए। 2818. राजकुलका अस्तित्व राजकुलकी सत्ताके विषय में कविका कहना है रहे हैं और समय-समयपर जिनवर उसकी स्थापना उत्पन्न हुआ दिखाई देता है । इस प्रकार बीजांकुर म्यायसे कुल चला आ रहा है । कि भारतमें राजाधोंके द्वारा राजकुल नष्ट किये जाते करते रहे हैं। इसलिए वह सावि अनादि होकर भी,

Loading...

Page Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 ... 463