Book Title: Mahapragna Darshan
Author(s): Dayanand Bhargav
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 9
________________ (vii) पर्यावरण अहिंसा विज्ञान - (१२३-१३१)-प्रकृति और मानव-प्रकृति के नियम-हम नया कच्चा माल पैदा नहीं कर सकते-विकास की आत्मघाती अवधारणा-नया परिदृश्यःयन्त्रीकृत मानव-गरीबी का अर्थ-साधन शुद्धिमहावीर उवाच (१३२-१५१) महाप्रज्ञ उवाच (१५२-१५४) (१५५-१७४)-हमारी आवश्यकता और अहिंसा-क्यों होती है हिंसा-हिंसा का शमन ध्यान के द्वारा-आहार और अहिंसा-श्रम और अहिंसा-अनाग्रह और अहिंसा-अभय और अहिंसा-अहिंसा व्यवहार में सहायक है-भेद में अभेद-निर्धनता की समस्या-अहिंसा और सामर्थ्य-रागद्वेष को पहचानें-प्रदर्शन निरर्थक है-न भोग, न दमन-हिंसा दुख है-अहिंसा और अपरिग्रह की युति-पर्यावरण और अहिंसा-क्रूरता का दृश्य-शस्त्रीकरण के आंकड़े-अहिंसा : कुछ मिथ्याधारणायेंमहाप्रज्ञ उवाच (१७५-१७७) (१७६-२०१)-देश-काल-युति-पदार्थ की लम्बाई और काल दोनो सापेक्ष हैं-जैनसम्मत सापेक्षता-सापेक्षता : बौद्ध और वेदान्ती दृष्टिकोण-विज्ञान सम्मत सापेक्षता-प्रकाश की गति की निरपेक्षता-द्रव्यमान की वृद्धि-काल की सापेक्षता-पदार्थ और ऊर्जा की युति-निष्कर्ष-द्वन्द्वों की दुनिया पाप-पुण्य- ज्ञान - कर्म – प्रवृत्ति - निवृत्ति- विम्ब - प्रतिबिम्बदुःख-सुख-यथा आगत तथा गत-भेदाभेद-व्यक्ताव्यक्तनिश्चय-व्यवहार-पूर्णता-अपूर्णता-जन्म-मृत्यु-तृतीय नेत्रपरिस्थिति-मनस्थिति-जड-चेतनमहाप्रज्ञ उवाच (२०२-२०३) (२०५-२१७)-वर्तमान शिक्षा जानकारी दे रही है संस्कार नहीं-शिक्षा का अवमूल्यन हुआ है-पशु नहीं है मनुष्य-विज्ञान की सीमा-दर्शन और विज्ञान-शिक्षा का उद्देश्य : चतुर्मुखी विकासमहाप्रज्ञ उवाच (२१८-२२२) - (२२३-२३५)-काव्यालोचनमहाप्रज्ञ उवाच (२३६-२३७) शिक्षा साहित्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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