Book Title: Mahapragna Darshan
Author(s): Dayanand Bhargav
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 7
________________ :: अनुक्रम :: सम्पादकीय (ix) लेखक की ओर से (xiii) दृष्टि (१-१३) भावभूमि - (१४-४२) दृष्टि का भ्रम-तीन रत्न-मोक्ष : हमारे जीवन का सहज लक्ष्य-अध्यात्म के बिना खोखली है समाज सेवा-सत्य का आवरण है कषाय-आत्मज्ञान कोई भूलभुलैया नहीं है-प्रारम्भ करें शरीर से शरीर और मन का सम्बन्ध-आस्तिकता और नास्तिकता-क्वांटम सिद्धान्त और प्राण-तत्त्व-पस्परोपग्रहो जीवनाम्-अन्धविश्वास नहीं है श्रद्धा-अहिंसा की सूक्ष्मता-अहिंसा की प्रासंगिकता-सूक्ष्म की शक्ति-चेतन का जड पर प्रभाव-बाह्य संसार एक: अन्दर के संसार सबके अलग अलग-अपने शुद्ध रूप की झलक-अपना सत्य स्वयं खोजें-तक्का तत्थ न विज्जइ-साक्षी केवल देखता ही नहीं बदलता भी है-शरीर भी संस्कारों का वाहक है-शरीर के मरने पर विचार नहीं मरता-सूक्ष्म से स्थूल की ओर-वार्धक्य जरा नहीं है-अभिमान विकास को रोकता है-तपसा निर्जरा-प्रवृत्ति में निवृत्ति-अखण्ड है काल और कालातीत है समता-कालचक्र का आवर्तन-अजरता अमरता का सूत्र महाप्रज्ञ उवाच (४३–५५) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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