Book Title: Madhyam vrutti vachuribhyamlankrut Siddhahemshabdanushasan Part 02
Author(s): Rajshekharvijay
Publisher: Shrutgyan Amidhara Gyanmandir

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Page 615
________________ सूत्राणामकाराद्यनुक्रमणिका ] मध्यमवृत्त्यवचूरिसंवलितम् / [555 कत्रिः / 3 / 2 / 133 // कत्र्यादेश्चैयकम् / 6 / 3 / 10 // कथमित्थम् / 7 / 2 / 103 // कथमि सप्तमी च वा / 5 / 4 / 13 / / कथादेरिकण् / 7 / 1 / 21 // कदाकोर्नवा / 5 / 3 // 8 // कन्थाया इकण् / 6 / 3 / 20 // कन्यात्रिवेण्याः-चाश६२॥ कपिज्ञातेरेयण / 7 / 1165 // कपिबोधा-से।६।११४४॥ कपेर्गोत्रे / 2 / 3 / 29 // कबरमणि-देः।।४।४२॥ कमेणिङ् / 3 / 4 / 2 // कम्बलान्नाम्नि / 7 / 1 / 34 // / करणक्रियया कचित् / 3 / 4 / 94 // / करणं च / 2 / 2 / 19 // . करणाद्यजो भूते / 5 / 1 / 158 / / करणाधारे।५।३। 129 / / करणेभ्यः / 5 / 4 / 64 // कर्कलोहि-च 71122 // कर्णललाटात्कल् / 6 / 314 // कर्णादेरायनिन् / 6 / 2 / 90 // * कर्णादेमले जाहः 71188 // कर्तरि / 2 / 2 / 86 // कर्तरि / 5 / 1 // 3 // कतर्यनद्भ्यः शव / 3 / 4 / 71 // कर्तुः क्विप-ङित् / 3 / 4 / 25 / / कर्तुः खश् / 5 / 1 / 117 / / कर्तुजीवपुरुषा-हः / 5 / 4 / 69|| कर्तुणिन् / 5 / 1 / 153 // कर्तुाप्यं कर्म / 2 / 2 / 3 // कर्तृ स्थामूर्ताप्यात् / 3 / 3 / 40 // कमजा तृचा च।३।१।८३॥ कर्मणः संदिष्टे / 7 / 2 / 167 // कर्मणि / 2 / 2 / 40 // कर्मणि कृतः / 2 / 2 / 83 // कर्मणोऽण / 5 / 1 / 72 // कर्मणोऽण / 5 / 3 / 14 // | कालाद् यः / 6 / 4 / 126 / / कर्मण्यग्न्यर्थे / 5 / 1 / 165 / / कालाध्वनोव्याप्तौ / / 2 / 42 / / कर्मवेषाद् यः / 6 / 4 / 103 // कालाध्वभा-णाम् / 2 / 2 / 23 / / कर्माभिप्रेयः संप्रदा० / 2 / 2 / 25 // काले कार्ये-वत् / 6 / 4 / 98 / कलापिकुथु-णः 7 / 4 / 62 // कालेन तृष्य-रे / 5 / 4 / 82 // कलाप्यश्वत्थ-कः।६।३१११४॥ काले भान्नवाऽऽधारे / 2 / 2 / 48|| कल्यग्नेरेयण / 6 / 1 / 17 // कालो द्विगौ च मेयैः / 3 / 1157|| कल्याण्यादेरिन् चा०।६।११७७|| काशादेरिलः / 6 / 2 / 82 // कवचिह-कण् / 6 / 2 / 14 // काश्यपको-च।६।३। 188 // कवर्गकस्वरवति / 2 / 3 / 76 // काश्यादेः। 6 / 3 / 35 // कषः कृच्छगहने / 4 / 4 / 67 // कासूगोणीभ्यो तरट् / 7 / 3 / 50 / / कषोऽनिटः / 5 / 3 / 3 / / किंयत्तत्सर्व-दा 7 / 2 / 95 // कष्टकक्षकृच्छ्र-णे।३।४।४१॥ . किंवृत्ते लिप्सायाम् // 5 // 3 // 9 // कसमा-धः / / 1 / 41 // किंवृत्ते सप्तमी-न्त्यौ / 5 / 4 / 14 / / कसोमात् ट्यण् / 6 / 2 / 107 // किंयत्तद्बहोरः / 5 / 1 // 10 // काकतालीयादयः / 7 / 1 / 117 / / किंकिलास्त्यर्थ-न्ती / 5 / 4 / 16 / / काकवौ वोष्णे / 3 / 2 / 137 // कि क्षेपे / 3 / 1 / 110 // काकाद्यैः क्षेपे / 3 / 1 / 90 // किंत्याद्य-स्याम् / 7 / 3 / 8 // काक्षपथोः / 3 / 2 / 134 // कितः संशयप्रतीकारे। 3 / 4 / 6 / / काण्डाऽऽण्डभाण्डा०७२।३८|| किमः क-च / 2 / 1140 // काण्डात् प्रमा-त्रे। 2 / 4 / 24 // किमद्वयादि-तस् / 7 / 2 / 89 // कादिर्व्यञ्जनम् / 1 / 1 / 10 // | किरो धान्ये / 5 / 3 / 73 / / कामोक्तावकञ्चिति / 5 / 4 / 26 / / किरो लवने।४।४।९३॥ कारकं कृता / 3 / 1 / 68 // किशरादेरिकट / 6 / 4 / 55 // कारणम् / 5 / 3 / 127 / / कुक्ष्यात्मोदरा-खिः / 5 / 1190 // कारिका स्थित्यादौ / 3 // 1 // 3 // कुजादे यन्यः / 6 / 147 // कार्षापणा-वा।६।४। 133 // कुटादेर्डिद्वदणित् / 4 / 3 / 17 / / कालः / 3 / 1 / 60 // कुटिलिकाया अण् / 6 / 4 / 26 / / कालवेलासमये-रे / 5 / 4 / 33 / / / कुटीशुण्डाद् रः / 7 / 3 / 47 // कालस्यानहोरात्राणाम् / 5 / 4 / 7 // | कुण्ड्यादिभ्यो यलु०६।३।११।। कालहेतु-गे।७।१।१९३ // कुत्वा डुपः / 7 / 3 / 49 / / कालाजटाधा-पे।७।२।२३ // | कुत्सिताल्पाज्ञाते / 7 / 3 / 33 // कालात् / 7 / 3 / 19 // कुन्त्यवन्तेः स्त्रियाम् / 6 / 1 / 12 / / कालात् तनतरतम०।३।२।२४॥ कुप्यभिद्यो-म्निा५।२३९|| कालात् परि-रे।६।४।१०४|| कुमहद्भ्यां वा / 7 / 3 / 108 // कालाद् देये ऋणे // 3 // 3 // 113 // | कुमारः श्रमणादिना / 3 / 1 / 115 // कालाद् भववत् / 6 / 2 / 111 // कुमारशीर्षाण्णिन् / 5 / 1 / 28 / /

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